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३५६ ऐसी मजबूत बनाई है कि इस दशा में भी हम थोड़ी बहुत विद्या सीख लेते हैं ! इस ताडना और पीडनसे कितनी हानि उठानी पडती है. इसे बहुत लोग तो समझते ही नहीं है, बहुत लोग समझकर स्वीकर नहीं करते हैं और बहुत लोग ऐसे हैं जो समझते हैं तथा स्वीकार भी करते हैं, परन्तु कामके वक्त, जैसा चला आ रहा है वैमा है चलाये जाना पसन्द करते हैं । *
संसार और मोक्ष। जैनधर्म के अनुसार संसार और मोक्ष दोनों अनादि कालसे हैं। इस धर्मके सिद्धान्तकी अपेक्षा संसार और परमात्मा ये दोनों ही सदैवसे विद्यमान हैं। कोई समय ऐसा नहीं हुआ कि जिसमें कोई न कोई जीव संसारी और कोई न कोई जीव मुक्त अर्थात् परमात्माकी दशामें न हो। कुछ मतावलम्बियोंका यह सिद्धान्त है कि प्रारम्भमें केवल एक ब्रह्म ही था, पश्चात् उसने यह समस्त संसार अपनी इच्छा व मायासे उत्पन्न किया । परन्तु जैनधर्मावलम्बियोंका यह श्रद्धान नहीं है । जैनधर्मका उपदेश है कि जो कुछ इस संसार में है, वह सदास है और सदा रहेगा। इस धर्मका सिद्धान्त यह है कि अस्तिसे नास्ति और नास्तिम अम्तिका प्रादु
र्भाव कदापि नहीं होता । जिस वस्तुका अस्तित्व है, उसका की नाश नहीं होता और जो नास्तिरूप है, उसका कभी अस्तित्व नहीं हो सकता। कोई वस्तु कभी उत्पन्न नहीं हुई । जो वस्तु है वह सदासे है और सदा रहेगी। केवल उसकी पर्यायमें परिवर्तन होता : रवीन्द्रबाबूके बंगला निवन्धका अनुवाद ।
१ नोट- बाबू ऋषभदास जी वी, ए. के उदै लेख का जनप्रदीप से अनुवाद किया गया।
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