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५ सिद्धान्तपाठशालाका स्थायी भाण्डार। मोरेनाकी सिद्धान्तपाठशालाका नये सिरेसे परिचय करानेकी जरूरत नहीं। सभी जानते हैं कि यह संस्था जैनसमाजकी एक बड़ी भारी कमीको पूरा कर रही है और अपने ढंगकी अद्वितीय है। जैन धर्मको स्थायी बनाये रखनेके लिए जरूरत है कि उसके वास्तविक तत्त्वों या सिद्धान्तोंका पठनपाठन होता रहे और उनके जाननेवाले, चर्चा करनेवाले और प्रचार करनेवाले विद्वान् बनते रहें। उक्त पाठशाला इसी उद्देश्यसे स्थापित की गई है और अपनी छोटीसी शक्तिके अनुसार वह काम भी कर रही है। अब तक इस पाठशालाका कोई स्थायी भण्डार या ध्रुवफण्ड न था—खास खास लोगोंकी सहायतासे ही चलती थी। पर अब इस तरह काम नहीं चल सकता। इसकी प्रसिद्धि अधिक हो चुकी है, इसलिए दूरदूरके विद्यार्थी पढ़नेके लिए आने लगे हैं। उनकी संख्या बढ़ जानेसे और कई नये अध्यापकोंके रखनेसे खर्च बहुत बढ़ गया है । अब आवश्यक है कि इसके चलानेका स्थायी प्रबन्ध कर दिया जाय । इसके लिए एक स्थायी फण्ड होना चाहिए जिसका कि प्रारंभ इन्दौरके उत्सवमें हो चुका है। एक लाख रुपयेके फण्डसे पाठशालाका काम अच्छी तरह चलने लगेगा। फण्डकी रक्षाके लिए एक ट्रस्ट कमेटी बना दी गई है जिसकी कि शीघ्र ही रजिस्टरी करा दी जायगी। आशा है कि जैनसमाजके धनिकगण इस ओर ध्यान देंगे
और बहुत जल्दी इस रकमको पूरी कर देंगे। सर्वसाधाण लोग भी इस फण्डमें सहायता दे सकें, इसके लिए पाठशालाके मंत्री महाशयने 'एक रुपया फण्ड' खोला है। प्रत्येक धर्मात्मा भाईको इस फण्डके सौ सौ पचास पचास टिकट मँगा लेना चाहिए और अपने नगर ग्रामोंमें जितने टिकट बिक सकें उतने, बेचकर पाठशालाकी सहा
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