Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 106
________________ ४२४ है। मराठी विविधज्ञानविस्तारकी मईकी संख्यामें 'भविष्यपुराण व म्लेच्छ' इस नामका एक लेख प्रकाशित हुआ है । उससे मालूम होता है कि व्यासजी महाराज इस विचित्र पुराणमें बौद्ध, शक, मुसलमान, छत्रपति शिवाजी, अँगरेज़, और दो चार वायसरायों तकका वर्णन लिख गये हैं ! इसाईयोंकी बायबिलमें जो आदम और हव्वाके द्वारा सृष्टिकी उत्पत्तिका वर्णन है, वह इस पुराणमें जैसाका तैसा नकल कर दिया गया है । आदमको अदम, हव्वाको हव्यवती, अदनके बागको प्रदानका रम्य महावन, सेथको श्वेत, इस तरह उक्त ईसाई कथाके नामोंको संस्कृतकी पोशाक पहना दी गई है । ईसा मसीहकी उत्पत्ति भी कुछ फेरफार करके लिख दी गई है। 'मुहम्मद'को आपने 'महामद' और उनके ' मदीना'को 'मद्रहीन' बना डाला है । मुसलमान शब्दका अर्थ आप यह करते हैं कि जिसका संस्कार मुसलसे (मूसलसे) हो, वह मुसलमान है । अँगरेजोंका. उल्लेख आपने 'गुरुंड' नामसे किया है। उनके मुँह आप बन्दरों जैसे बतलाते हैं ! महाराणी विक्टोरियाका स्मरण आपने 'विकटावती' नामसे किया है। गुरुंड वंशके सात राजाओंका (वायसरायोंका ?) भी उल्लेख है । आपने एक जगह म्लेच्छ भाषाओंका भी वर्णन किया है और उसमें बड़े भारी आश्चर्यकी बात यह है कि ब्रजभाषा और मराठीको भी म्लेच्छ भाषाकी पदवी दे डाली है ! (ब्रजभाषाकी कविताके पृष्ठपोषकोंको व्यासजीकी जल्द खबर लेनी चाहिए।) इसमें सन्देह नहीं कि पुराणानुयायी लोगोंकी अपने पूर्वजोंके भविष्यकथन पर इतनी प्रगाढ श्रद्धा है कि वे इस अवस्थामें भी भविष्यपुराणको जाली या बनावटी कहनेके लिए तैयार न होंगे और इसलिए इस विषयमें उनसे कुछ कहना न कहना बराबर होगा; तो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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