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. १७ मेरे गुरुदेव-लेखक और प्रकाशक वही जो इसके पहलेकी पुस्तकके हैं। जिस समय श्रीयुक्त स्वामी विवेकानन्दजी अमेरिकामें थे, उस समय उन्होंने न्यूयार्क शहरमें अपने गुरुवर्य श्रीरामकृष्ण परमहंसका परिचय देनेके लिए एक व्याख्यान दिया था। इस पुस्तकमें उसी व्याख्यानका हिन्दी अनुवाद है। व्याख्यान बहुत पाण्डित्यपूर्ण और प्रभावशाली है। जैनीभाई भी इसे पढ़कर लाभ उठा सकते हैं । ४८ पृष्टकी पुस्तकका मूल्य चार आना कुछ अधिक मालूम होता है।
१८ दासबोध-अनुवादक, पं० माधवराव सप्रे बी. ए. और पं० लक्ष्मीधर वाजपेयी । प्रकाशक, चित्रशाला प्रेस, पूना । पृष्ठ संख्या लगभग ६०० । मूल्य दो रुपया। छत्रपति महाराज शिवाजीके समयमें समर्थ रामदास नामके एक सुप्रसिद्ध साधु हो गये हैं। शिवाजी महाराज उन्हें अपना गुरुं मानते थे और उनके अनन्य भक्त थे। महाराष्ट्र देशका उद्धार करके उसे स्वतंत्र राष्ट्रके रूपमें खड़ा करनेमें समर्थ रामदासके उपदेशोंने बड़ा काम किया था। समर्थ कोरे साधु ही न थे-वे बड़े भारी वेदान्ती होनेके साथ ही बड़े भारी राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने अपने उपदेशों, ग्रन्थों और शिष्योंके द्वारा सारे महाराष्ट्रमें स्वाधीनताके भावोंकी-धर्मराज्य स्थापित करनेके विचारोंकी रूह फूंक दी थी। उन्होंने मराठी भाषामें अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है, जिनमेंसे दासबोध सबसे प्रसिद्ध है । यह उसी मराठी ग्रन्थका हिन्दी अनुवाद है । अनुवाद बड़ी ही सावधानी और विद्वत्तासे किया गया है। ग्रन्थकर्ताका जीवनचरित खूब विस्तारसे और खोजसे लिखा गया है। 'दासबोधकी आलोचना' ३० पृष्ठोंमें लिखी गई है। इसके पढ़नेसे ग्रन्थका महत्त्व, उसकी विशेषतायें, उसमें निरूपण किये हुए
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