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दश प्रतियोंके दश, पाँच पाँच प्रतियोंके बीस, दोदो प्रतियोंके पच्चीस ग्राहक बन जावें, तो बातकी बातमें ढाई सौ ग्राहक हो सकते हैं । ऐसे ग्राहकोंके नाम ग्रन्थमालाके आवरण पृष्ठ पर सहायकोंके रूपमें हमेशा छपे रहेंगे । ग्राहकगण चाहे तो अपनी प्रतियोंको जैनसंस्थाओंको भेट दे दिया करें, चाहे विद्वानोंमें वितरण कर दिया करें और चाहे सर्वसाधारणकी लायब्रेरियों में भेज दिया करें। .
सनातनग्रन्थमालाके विषयमें 'पं० पन्नालालजी जैन, मैदागिनी जैनमन्दिर, बनारस सिटी, के पतेसे पत्रव्यवहार करना चाहिए ।
पुस्तक-परिचय। १६ गृहिणीभूषण-लेखक, पं० शिवसहाय चतुर्वेदी । प्रकाशक हिन्दीहितैषी कार्यालय; देवरी जिला सागर । पृष्ठ संख्या १२६। मूल्य आठ आना। कन्यायें जब पत्नी बनती हैं, तबसे लेकर जब वे गृहिणी माता और सन्तानरक्षिका बन जाती हैं, तबतक काममें आनेवाली सब प्रकारकी अच्छी बातें सिखलानेके लिए यह पुस्तक लिखी गई है। स्त्रीके पतिके प्रति, मातापिताके प्रति, सन्तानके प्रति, सम्बन्धियोंके प्रति, पड़ौसियोंके प्रति क्या क्या कर्तव्य हैं, उसे अपना स्वभाव, रहन सहन, वर्ताव आदि कैसा रखना चाहिए; सतीत्व, विनय, शिष्टाचार, लज्जाशीलता, गंभीरता, संतोष, सद्भाव, चरित आदि गुणोंकी व्याख्या; शरीररक्षा, हिसाबकिताब, गर्भरक्षा, सन्तानपालन, गृहकर्म, जाननेकी आवश्यकता; आदि सभी उपयोगी विषयोंका इसमें संग्रह है। भाषा भी शुद्ध और सुगम है। जैनसमाजकी स्त्रियोंमें इस प्रकारकी पुस्तकोंके प्रचारकी बहुत आवश्यकता है। हमने इस पुस्तकको आद्यन्त पढ़ा है-प्रायः कोई बात ऐसी नहीं, जो जैन-विचारोंसे प्रतिकूल हो।
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