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भारतका प्रत्येक घर शब्दायमान हो । नमूनेके तौर पर एक हम गजलको यहाँ उद्धृत किये बिना नहीं रह सकते:
वही धन हैं जिन्हें धुन देशकी दिलमें समाई है। है जिनका देशही माता पिता भाई लुगाई है। जिन्हें परवा न खानेकी न पीनेकी न सुध तनकी। जिन्होंने छोड़ घर दर देशहित धूनी रमाई है। सतावे लाख चाहे कोई पर उनको सदा सुख है। जिन्हें आदर निरादर एकसा देता दिखाई है॥ रुलाती हैं जिन्हें नित देशबन्धोंकी गिरी हालत।
मदद उनकी करो प्यारो! इसीमें ही भलाई हैं। - २१ सामान्यनीति काव्य-रचयिता पं० हरदीन त्रिपाठी । प्रकाशक, ग्रन्थप्रकाशक समिति काशी । मूल्य तीन आने । इसमें दीन महाशयकी रची हुई १०८ कुण्डलियाँ हैं। कविता उथली और नीरस है । भाषा भी अच्छी नहीं । अच्छा होता यदि समिति गिरधरकी कुण्डलियोंका संग्रह छपा कर अपने उद्देश्यकी पूर्ति करती ।
२२ वनवासिनी-लेखक, पं० उदयलालजी काशलीवाल । प्रकाशक, हिन्दी जैनसाहित्यप्रसारक कार्यालय बम्बई । मूल्य चार आना । छोटासा सुन्दर और शिक्षाप्रद उपन्यास है। इसका कथाभाग भी सरस और कुतूहलवर्धक है । हमने इसे गुजरातीमें पढ़ा था। इसका मूल नाम ऋषिदत्ता ही रक्खा जाता, तो अच्छा होता । क्योंकि इसक कथाभाग एक श्वेताम्बर ग्रन्थके आधारसे लिखा गया है। मूल्य कुछ अधिक मालूम होता है।
२३ जैनसाहित्यसीरीज-सत्यवादीके सम्पादक पं० उदय. लालजी काशलीवालने बाबू बिहारीलालजीके साथ मिलकर इस ग्रन्थ
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