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समय अनुवादक महाशय इसके छोड़े हुए अंशको भी लिख देनेका विश्वास दिलाते हैं।
- ३ पुराने पुराणों में नई मिलावट । हिन्दुओंके अठारह पुराण सुप्रसिद्ध हैं। साधारण लोग इन सबको श्रीव्यासजीके बनाये हुए समझते हैं। बहुतसे श्रद्धालु लोग तो यहाँ तक मानते हैं कि उक्त पुराण जिस रूपमें इस समय मिलते हैं, ठीक इसी रूपमें व्यासजीके द्वारा रचे गये हैं-उनकी रचनामें जरा भी न्यूनाधिकता नहीं की गई है। परन्तु पुराणोंका विचारपूर्वक स्वाध्याय करनेसे इस बातपर विश्वास नहीं होता-उनमें ऐसे सैकड़ों प्रमाण मिलते हैं जिनसे मालूम होता है कि या तो वे बने ही बहुत पीछे हैं, या उनमें बहुतसा भाग पीछेसे मिला दिया गया है। धर्मप्रन्थोंमें इस तरह की मिलावटें बहुत की गई हैं । प्रसिद्ध प्रसिद्ध महात्माओं
और ग्रन्थकर्ताओंके नामसे लोगोंने अपने सैकड़ों भले बुरे विचार इन ग्रन्थोंमें घुसेड़ दिये हैं। महाभारतकी श्लोकसंख्या इस समय लगभग एक लाख है। परन्तु स्वर्गीय बाबू बंकिमचन्द्रने अपने 'कृष्ण चरित'में अनेक युक्तियाँ देकर अच्छी तरह सिद्ध किया है कि मूल महाभारत पच्चीस हजार श्लोकोंसे अधिकका न था ! उन्होंने यह बतलानेकी भी चेष्टा की है कि प्रक्षिप्त भागका अमुक अंश अमुक समयमें बना होगा और अमुक अमुक समयमें । अठारह पुराणोंमें 'भविप्यपुराण' भी एक प्रसिद्ध पुराण है । यह भी व्यासजीका बनाया हुआ कहलाता है । इसे यदि हम निरन्तर वृद्धिशील सचेतन पुराण कहें, तो कह सकते हैं। क्योंकि इसका शरीर बराबर वृद्धिको प्राप्त होता जाता है । सुनते हैं कि प्रत्येक संस्करणमें इसका कुछ भाग बढ़ जाता है और संस्करणसमय तकका भविष्यकथन उसमें शामिल हो जाता
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