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भी जो सज्जन विवेकी और विचारशील हैं, उन्हें सावधान हो जाना चाहिए और पौराणिक साहित्यका अध्ययन केवल श्रद्धा दृष्टिसे नहीं; किन्तु विवेकयुक्त श्रद्धादृष्टिसे करना चाहिए।
४ भारतीय सभ्यताके प्राचीन चिह्न । तिव्वत, चीन, जापान, श्याम, कम्बोडिया, अनाम, जावा, बाली आदि देश और द्वीप किसी समय भारतकी सभ्यतासे ही सभ्य हुए थे। इस बातके अब तक अनेक प्रमाण मिल चुके हैं। अब यह भी पता लगा है कि किसी समय मध्यएशियाके प्रदेशोंमें भी यहींकी सभ्यताकी तूती बोलती थी। विख्यात पर्यटक और आविष्कारक 'डा० वन् ले कक्' कुछ समयसे चीन-तुर्कस्थानमें जमनिके भीतरसे प्राचीन इतिहासकी सामग्रीकी खोज करनेमें लग रहे थे। उन्होंने अब तक मरालवाशीके निकटके कूवा और टूमशुग नामक स्थानोंमें अपना कार्य किया है। इस प्रयत्नमें उन्हें आशातीत सफलता प्राप्त हुई है। अपनी संग्रहकी हुई सामग्रीको वे बड़े बड़े १५२ बाक्सोंमें बन्द करके देशको भेज चुके हैं ! इस सामग्रीमें गान्धार तक्षणशिल्पक बीसों नमूने मिले हैं । वे पत्थरोंपर नहीं उकीरे गये हैं, किन्तु मिट्टीसे बनाये गये हैं और उन पर ऊपरसे रेतचूनेका आस्तर चढ़ाया गया है। बहुतोंके ऊपर अब भी रंग और सोनेके पत्र लगे हुए हैं। बहुतसी हस्तलिखित पुस्तकें भी प्राप्त हुई हैं जिनमें कुछ संस्कृतभाषामें लिखी हुई हैं और कुछ ईराणकी भाषामें। इस समाचारको लिखते हुए प्रवासीके सम्पादक महाशय लिखते हैं कि " हमारे पूर्व पुरुषोंने पहाड पर्वत समुद्र मरुभूमि पार करके न जाने कितने देशोंमें हिन्दू-सभ्यता फैलाई थी और उनके वंशज हम ऐसे हैं कि अपने देशके ही अज्ञानको दूर नहीं कर सकते हैं!"
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