Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 83
________________ ४०१ के पद्य और उसकी टीकाओंका गद्य भी पाया जाता है, तब इसमें कोई भी संदेह बाकी नहीं रहता कि यह ग्रंथ विक्रम संवत् १६६०से भी पीछेका बना हुआ है। (२) वास्तवमें, यह ग्रंथ सोमसेनत्रिवर्णाचार (धर्मरसिकशास्त्र) से भी पीछेका बना हुआ है । सोमसेन त्रिवर्णचार भट्टारक सोमसेनका बनाया हुआ है ।* और विक्रमसंवत् १६६७ के कार्तिक मासमें बन कर पूरा हुआ है; जैसा कि उसके निम्नलिखित पद्यसे प्रगट है: “अब्दे तत्वरसर्तुचंद्र (१६६७) कलिते श्रीविक्रमादित्यजे । मासे कार्तिकनामनीह धवले पक्षे शरत्संभवे ॥ .... बारे भास्वति सिद्धनामनि तथा योगे सुपूर्णातिथौ । नक्षत्रेऽश्वनिनानि धर्मरसिको ग्रन्थश्चपूर्णीकृतः॥१३-२१६॥ जिनसेन-त्रिवर्णाचारमें 'सोमसेनत्रिवर्णाचार' प्रायः ज्योंका त्यों उठाकर रक्खा हुआ है। कई पर्व इस ग्रंथमें ऐसे हैं जिनमें सोमसेन - त्रिवर्णाचारके अध्याय मंगलाचरणसहितं ज्योंके त्यों नकल किये गये हैं । सोमसेनत्रिवर्णाचारकी श्लोकसंख्या, उसी ग्रंथमें अन्तिम पद्यद्वारा, दो हजार सातसौ (२७००) श्लोक प्रमाण वर्णन की है। इस संख्यामेंसे सिर्फ ७२ पद्य छोड़े गये हैं और बीस बाईस पद्योंमें कुछ थोडासा नामादिकका परिवर्तन किया गया है। शेष कुल पद्य जिनसेनत्रिवर्णाचारमें ज्योंके त्यों, जहाँ जब जीमें आया, नकल कर दिये हैं। .. सोमसेनत्रिवर्णाचारमें, प्रत्येक अध्यायके अन्तमें, सोमसेन भट्टारकने पद्यमें अपना नाम दिया है । इन पद्योंको जिनसेनत्रिवर्णाचारके कर्ताने कुछ कुछ बदल कर रक्खा है। जैसा कि नीचेके उदाहरणोंसे प्रगट होता (१)."धन्यः स एव पुरुषः समतायुतो यः। प्रातः प्रपश्यति जिनेंद्रमुखारविन्दम् ॥ . . . • इस सोमसेनत्रिवर्णाचारकी परीक्षा भी एक स्वतंत्र लेख द्वारा की जायगी। -लेखक । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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