Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 102
________________ ४२० रका यह बड़ा भारी जरिया है-इससे तो हम अपने धर्मकी आशातीत उन्नति कर सकते हैं और हममें यदि कुछ करतूत हो, तो सारे अप्रवालोंको जैन बना सकते हैं । बड़े अफसोसकी बात है कि इस बहुत ही अच्छे द्वारको हम अपने हाथसे बन्द कर देना चाहते हैं। इसी तरह यदि हम अपने कुटुम्बोंको शिक्षा, सदाचार आदि गुणोंसे आदर्श बना दें, सच्चे जैनधर्मका रूप अपने घरमें खड़ा कर दें, तो कट्टरसे कट्टर वैष्णव कन्या आकर भी हमारे आगे सिर झुका देगी । जैनी अग्रवाल कुछ निर्धन भी नहीं है। यदि डर है कि जैनी वैष्णव बन -- जावेंगे, तो उन्हें चाहिए कि इसके लिए खास तौरसे दो चार उपदेशक रख लें, जगह जगह धर्मशिक्षा देनेकी व्यवस्था कर दें और धार्मिक साहित्यका विशेष प्रयत्नसे प्रचार करें । __ इस विषयमें एक बात हमें अवश्य याद रखना चाहिए कि यदि यह सम्बन्ध चिरस्थायी रखना है तो हमें, इस धार्मिक मामलेमें - किसी स्त्री पुरुष पर अनुचित दबाव न डालना चाहिए । हम सिर्फ उपदेश दे सकते हैं, समझा सकते हैं और अपने चरित्रका प्रभाव डाल सकते हैं परन्तु किसी बहू बेटीको जबर्दस्ती किसी धर्म पर आरूढ नहीं कर सकते हैं। यह बात जैन और वैष्णव दोनोंहीको सदा स्मरण रखना चाहिए। इस बातको हम भी आवश्यक और उचित समझते हैं कि जैन अग्रवालोंमें प्रान्तीयता या पोशाकके कारण जो सम्बन्ध नहीं होता है, वह जारी कर दिया जाय और इसके लिए जल्द उद्योग किया जाय । परन्तु वैष्णवोंका सम्बन्ध कदापि न तोड़ा जाय । यह भी याद रखना चाहिए कि इस सम्बन्धके टूटनेसे अग्रवाल भाईयोंका विवाहक्षेत्र बहुत ही संकुचित हो जायगा और फिर उन्हें और और अल्पसंख्यक जातियोंके समान ही वरकन्यानिर्वाचनका कष्ट भोगना पड़ेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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