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उठाकर रखें हैं, उनको उसी तरहसे नकल कर दिया है। सिर्फ जो नाम उसे अनिष्ट मालूम हुआ, उसको बदल दिया है और जहाँ कहीं उसकी समझमें ही नहीं आया कि यह 'नाम' है, वह ज्योंका त्यों रह गया है। इसके सिवाय ग्रंथकर्ताके हृदयमें इस बातका जरा भी भय न था कि कोई उसके ग्रंथका मिलान करनेवाला भी होगा या कि नहीं। वह अज्ञानान्धकारसे व्याप्त जैनसमाज पर अपना स्वच्छंद शासन करना चाहता था। इसीलिए उसने आँख बन्द करके अंधाधुंध, जहाँ जैसा जीमें आया, लिख दिया है। पाठकों पर आगामी अंकमें इसका सब हाल खुल जायगा और यह भी मालूम हो जायगा कि इस त्रिवर्णाचारका कर्ता जैनसमाजका कितना शत्रु था। यहाँ पर इस समय सिर्फ इतना और प्रगट किया जाता है कि इस त्रिवर्णाचारके चौथे पर्वमें एक संकल्प मंत्र दिया है, जिसमें संवत् १७३१ लिखा है। वह संकल्प मंत्र इस प्रकार है:___ “ओं अथ त्रैकाल्यतीर्थपुण्यप्रवर्तमाने भूलोके भवनकोशे मध्यम लोके अद्य भगवतो महापुरुषस्य श्रीमदादिब्रह्मणो मते जम्बूद्वीपके तत्पुरो मेरोदक्षिणे भारतवर्षे आर्यखंडे एतदवसर्पिणीकालावसानप्रवर्तमाने कलियुगाभिधानपचमकाले प्रथमपादे श्रीमहति महावीरवर्द्धमानतीर्थकरोपदिष्टसद्धर्मव्यतिकरे । श्रीगौतमस्वामीप्रतिपादितसन्मार्गप्रर्वतमाने श्रीश्रेणिकमहामंडलेश्वरसमाचरित. सन्मार्गविशेषे सम्वत् १७३१ प्रवर्तमाने अ० संवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासेर..............." ___ मालूम होता है कि यह संकल्पमंत्र किसी ऐसी याददाश्त (स्मरणपत्र ) परसे उतारा गया है, जिसमें तत्कालीन व्यवहारके लिए किसीने संवत् १७३१ लिख रक्खा था । नकल करते या कराते समय ग्रन्थकर्ताको इस संवतके बदलनेका कुछ खयाल न रहा और इस लिए वह
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