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उन्हींके ग्रंथोंको देखकर यह लिखा गया है । जैसा कि निम्नलिखित पद्योंसे प्रगट होता है:--
" श्रीब्रह्मसूरिद्विजवंशरत्नं श्रीजैनमार्गप्रविवुद्धतत्त्वः । वाचं तु तस्यैव विलोक्य शास्त्रं कृतं विशेषान्मुनिसोमसेनैः॥
(सोम० त्रि. ३-१४९ ) "कर्म प्रतीतिजननं गृहिणां यदुक्तं,श्रीब्रह्मसूरिवरविप्रकवीश्वरेण। सम्यक् तदेव विधिवत्प्रविलोक्य सूक्तं, श्रीसोमसेनमुनिभिः
शुभमंत्रपूर्वम् ॥" ( सो० त्रि० अ० ५ श्लो० अन्तिम) विवाहयुक्तिः कथिता समस्ता संक्षेपतः श्रावकधर्ममार्गात् । श्रीब्रह्मसूरिप्रथितं पुराणमालोक्य भट्टारकसोमसेनः॥
(सोम० त्रि. ११-२०४ ) वास्तवमें सोमसेनत्रिवर्णाचारमें ब्रह्ममूरित्रिवर्णाचार ' से बहुत कुछ लिया गया है और जो कुछ उठाकर या परिवर्तित करके रक्खा गया है, वह सब जिनसेनत्रिवर्णाचारमें भी उसी क्रमसे मौजूद है । बल्कि इस त्रिवर्णाचारमें कहीं कहीं पर सीधा ब्रह्मसूरित्रिवर्णाचारसे भी कुछ मजमून उठाकर रक्खा गया है जो सोमसेन त्रिवर्णाचारमें नहीं था; जैसा कि छठे पर्वमें ' यंत्रलेखनविधि,' इत्यादि । परन्तु यह सब कुछ होते हुए भी जिनसेनत्रिवर्णाचारमें उपर्युक्त तीनों पद्योंको इस प्रकारसे बदल कर रक्खा है:--
"श्रीगौतमर्षिद्विजवंशरत्नं श्रीजैनमार्ग प्रविवुद्धतत्त्वः। वाचं तु तस्यैव विलोक्य शास्त्रं कृतं विशेषान्मुनिजैनसेनैः॥
(पर्व ४ श्लो० अन्तिम ) कर्म प्रतीतिजननंगृहिणां यदुक्तं श्रीगौतमर्षिगणविप्रकवीश्वरेण सम्यक् तदेवविधिवत्प्रविलोक्य सूक्तं श्रीजैनसेनमुनिभिः शुभमंत्र
पूर्वम् । ( पर्व ७ श्लो० अन्तिम ) . . .१ इस ब्रह्मसूरि त्रिवर्णाचारकी परीक्षा भी एक स्वतंत्र लेखद्वारा की जायगी।
-लेखक ।
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