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श्लोक नं. ९ में 'अत्रान्तरे' ऐसा पद इस बातको बतला रहा है कि गातमस्वामि कुछ कथन कर रहे थे जिसके दरम्यानमें मुनियोंने उनसे कुछ सवाल किया है। वास्तवमें आदिपुराणमें ऐसा ही प्रसंग था। वहाँ ११ वें पर्वमें वज्रनाभिका सर्वार्थसिद्धिगमन वर्णन करके १२ वें पर्वके प्रथम श्लोकमें यह प्रस्तावना की गई थी कि अब वज्रनाभिके स्वर्गसे पृथ्वी पर अवतार लेने आदिका वृत्तान्त सुनाया जाता है। उसके बाद दूसरे नम्बर पर फिर यह श्लोक नं. ९ दिया था। परन्तु - यहाँ पर वज्रनाभिके सर्वार्थसिद्धिगमन आदिका वह कथन कुछ भी न लिखकर एकदम १०-११ पर्व छोड़कर १२ वें पर्वके इस श्लोकसे ऐसे कई श्लोक विना सोचे समझे नकल करडाले हैं जिनका मेल पहले श्लोकोंके साथ नहीं मिलता। अन्तके ११ वें श्लोकमें त्वया प्रागेव वर्णिता' इस पदके द्वारा यह प्रगट किया गया है कि कुलकरोंकी उत्पत्तिका वर्णन इससे पहले दिया जा चुका है । आदिपुराणमें ऐसा है भी । परन्तु इस ग्रंथमें ऐसा नहीं किया गया । इस लिए यहाँ रक्खा हुआ यह श्लोक त्रिवर्णाचारके कर्ताकी बे समझी जाहिर कर रहा
"देवाद्य यामिनीभागे पश्चिमे सुखनिद्रिता। अद्राक्षं षोडशस्वप्नानिमानत्यद्भुतोदयान् ॥ ७३॥ वदेतेषां फलं देव शुश्रूषा मे विवर्द्धते। अपूर्वदर्शनात्कस्य न स्यान्कौतुकवन्मनः ॥ ७४॥" इन दोनों श्लोकोंमेंसे पहले श्लोकमें 'इमान्' शब्दद्वारा आगे स्वप्नोंके नामकथनकी सूचना पाई जाती है। और दूसरे पद्यमें 'एतेषां' शब्दसे यह जाहिर होता है कि उन स्वप्नोंका नामादिक कथन कर दिया गया; अब फल पूछा जाता है। परन्तु इन दोनों श्लोकोंके मध्यमें १६ स्वप्नोंका नामोल्लेख करनेवाले कोई भी पद्य नहीं .
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