Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ भट्टारकके प्रतिष्ठित होनेका कथन है उन्हींका सोमसेन त्रिवर्णाचार बनाया हुआ है। इन सोमसेनके पट्ट पर उक्त पट्टावलीमें जिनसेन भट्टारकके प्रतिष्ठित होनेका कथन किया गया है। हो सकता है कि जिनसेनत्रिवर्णाचार उन्हीं सोमसेन भट्टारकके पट्ट पर प्रतिष्टित होनेचाले जिनसेन भट्टारकका सम्पादन किया हुआ हो और इस लिए विक्रमकी १७ वीं शताब्दीके अंतमें या १८ वीं शताब्दीके आरंभमें इस ग्रंथका अवतार हुआ हो । परन्तु पट्टावलीमें उक्त जिनसेन भट्टारककी योग्यताका परिचय देते हुए लिखा है कि, वे महामोहान्धकारसे ढके हुए संसारके जनसमूहोंसे दुस्तर कैवल्य मार्गको प्रकाश करनेमें दीपकके समान थे और बड़े दुर्धर्ष नैय्यायिक कणाद वैय्याकरणरूपी हाथियोंके कुंभोत्पाटन करनेमें लम्पट बुद्धिवाले थे, इत्यादि । यथाः "तत्पट्टे महामोहान्धकारतमसोपगूढभुवनभवलग्नजनताभि दुस्तरकैवल्यमार्गप्रकाशकदीपकानां, कर्कशतार्किककणादवैय्याकरणबृहत्कुंभिकुंभपाटनलम्पटधियां, निजस्वस्याचरणकणखंजायिनचरणयुगादेकाणां, श्रीमद्भट्टारकवर्य सूर्यश्रीजिनसेनभट्टारकाणाम् ॥ ४८॥" यदि जिनसेन भट्टारककी इस योग्यतामें कुछ भी सत्यता है तो कहना होगा कि यह 'जिनसेन त्रिवर्णाचार' उनका बनाया हुआ नहीं है । क्योंकि जिनसेनत्रिवर्णाचारके कर्ताकी योग्यताका जो दिग्दर्शन ऊपर कराया गया है उससे मालूम होता है कि वे एक बहुत मामूली अदूरदर्शी और साधारण बुद्धिके आदमी थे। और यदि सोमसेन भट्टारकके पट्ट पर प्रतिष्ठित होनेवाले जिनसेन भट्टारककी, वास्तवमें, ऐसी ही योग्यता थी जैसी कि जिनसेनत्रिवर्णाचारसे जाहिर है-पट्टीवलीमें दी हुई __ १ सेनगणकी पट्टावलीका केवल संस्कृत गद्य ही अच्छा है । इतिहासकी दृष्टिसे उसका कुछ अधिक मूल्य नहीं मालूम होता है। उसके कर्ता चाहे जिसको चाहे जितना बड़ा बना दे सकते हैं । गुणभद्राचार्यको उन्होंने द्वादशांगका ज्ञाता बतला दिया है!! -सम्पादक। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148