Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 72
________________ ३९० ग्रन्थपरीक्षा। (३) जिनसेन-त्रिवर्णाचार। इस त्रिवर्णाचारका दूसरा नाम 'उपासकाध्ययनसारोद्धार' भी है; ऐसा इस ग्रंथकी प्रत्येक संधिसे प्रगट होता है । यह ग्रंथ किस समय बना है और किसने बनाया है, इसका पृथकरूपसे कोई स्पष्टोलेख इस ग्रंथमें किसी स्थान पर नहीं किया गया है। कोई ' प्रशस्ति' भी इस ग्रंथके साथ लगी हुई नहीं है । ग्रंथकी संधियोंमें ग्रंथकर्ताका नाम कहीं पर ' श्रीजिनसेनाचार्य ' कहीं ' श्रीभगवजिनसेनाचार्य' कहीं ' श्रीजिनसेनाचार्य नामांकित विद्वज्जन' और कहीं ' श्रीभट्टारकवर्य जिनसेन ' दिया है। इन संधियों से पहली संधि इस प्रकार है: __"इत्याचे श्रीमद्भगवन्मुखारविन्दाद्विनिर्गते श्रीगौतमर्षिपदपद्माराधकेन श्रीजिनसेनाचार्येण विरचिते त्रिवर्णाचारे उपासकाध्ययनसारोद्धारे श्रीश्रेणिकमहामंडलेश्वरप्रश्नकथनश्रीमवृषभदेवस्य पंचकल्याणकवर्णनद्विजोत्पत्तिभरतराजदृष्टषोडशस्वप्नफलवर्णनं नाम प्रथमः पर्वः। संधियोंको छोड़कर किसी किसी पर्वके अन्तिम पद्योंमें ग्रंथकर्ताका नाम 'मुनि जैनसेन' या ' भट्टारक जैनसेन ' भी लिखा है। परन्तु इस कोरे नामनिर्देशसे इस बातका निश्चय नहीं हो सकता कि यह ग्रंथ कौनसे 'जिनसेन' का बनाया हुआ है । क्योंकि जैन समाजमें 'जिनसेन ' नामके धारक अनेक आचार्य और ग्रंथकर्ता हो गये हैं। जैसा कि आदिपुराण और पाभ्युदय आदि ग्रंथोंके प्रणेता भगवजिनसेन; हरिवंश पुराणके रचयिता दूसरे जिनसेन; हरिवंपुराणकी ' प्रशस्ति ' में जिनका जिकर है वे तीसरे जिनसेन; Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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