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पट्टावलियोंमें जगह जगह सन्देह होते हैं । ऐसा मालूम होता है के प्राचीन पट्टावलियाँ लुप्त हो गई हैं और उनके स्थानमें अभी सौ दो मी वर्ष पहलेके भट्टारकोंने कुछ अनमानसे, कुछ कल्पनासे और कुछ पुराने नोटोंसे ये पट्टावलियाँ गढ़ ली हैं । इस लिए इनमें बीसों बातें यथार्थतासे बिलकुल विरुद्ध पाई जाती हैं । नन्दिसंघकी पट्टावली भी ऐसी ही है । इसमें बतलाया हुआ — गृध्रपिच्छ' नाम कुन्दकुन्दका नहीं, किन्तु उमास्वामि या उमास्वातिका दूसरा नाम है । इसकी साक्षीमें बीसों प्रमाण दिये जा सकते हैं । यथा2--तत्वार्थसूत्रकर्तारं गृध्रपिच्छोपलक्षितम् । बन्द गणीन्द्रसंजातमुमास्वामिमुनीश्वरम् ॥
-तत्त्वार्थप्रशस्ति । २-तस्यान्वये भृविदिते बभूव यः पद्मनन्दिप्रथमाभिधानः ।
श्रीकुन्दकुन्दादिमुनीश्वराख्यः सत्संयमादुद्गतचारणर्द्धिः॥४॥ अभूदुमास्वातिमुनीश्वरोऽसावाचार्यशब्दोत्तरध्रपिच्छः । तदन्वये तत्सदृशोस्ति नान्यस्तात्कालिकाशेषपदार्थवेदी॥५॥
-श्रवणबेलगुलका ४० वा लेख । ३-तदीय वंशाकरतः प्रसिद्धादभूददेषा यतिरत्नमाला ॥
बभौ यदन्तर्मणिवान्मुनीन्द्रग्स कुण्डकुण्डोदितचण्डदण्डः॥१० अभूदुमास्वातिमुनिः पवित्रे वंशे तदीये सकलार्थवेदी॥ सूत्रीकृतं येन जिनप्रणीतं शास्त्रार्थजातं मुनिपुंगवेन॥ ११ ॥ स प्राणिसंरक्षणसावधानो बभार योगी किल गृध्रपक्षानू तदा प्रभृत्येव बुधा यमाहुराचार्यशब्दोत्तरगृध्रपिच्छम् ॥१२॥
-मंगराजकविकृत शिलालेख । इनके सिवा और भी कई प्रमाण हैं जो आगे अन्यान्य प्रसंगोंमें दिये जायेंगे। इससे साफ मालूम होता है कि कुन्दकुन्दका नाम गृध्रपिच्छ नहीं था।
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