________________
३७३.
तस्य समीपे सकलं सिद्धान्तमधीत्य वीरसेनगुरुः । उपरितमनिबन्धनाद्यधिकारानष्ट च लिलेख ॥ १७८
कुन्दकुन्द और उमास्वामि । कुन्दकुन्द और उमास्वामिका परस्पर क्या सम्बन्ध था, इस विषयमें तीन मत हैं-१ कुन्दकुन्द उमास्वामिके गुरु थे, २ वे उमास्वामिके शिष्य थे और ३ दोनों एक ही थे। मेरी समझमें इनमें से पहला मत ठीक मालूम होता है। क्योंकि एक तो श्रवणबेलगुलके जिन सात आठ शिलालेखोंमें कुन्दकुन्दका उल्लेख है, उनमें यही लिखा है कि उमास्वामि कुन्दकुन्दके शिष्य थे । दूसरे पट्टावलीके लेखक भी इसी मतको पुष्ट करते हैं और कुन्दकुन्दके गुरुका नाम जिनचन्द्र बतलाते हैं। तीसरे कई ग्रन्थोंमें कुन्दकुन्दके गुरुका नाम उमास्वामि न बतलाकर और ही कुछ बतलाया है। - यशोधरचरितकी भूमिकामें किसी ग्रन्थके निम्नलिखित दो श्लोक उद्धृत किये गये हैं:
श्रीमानुमास्वातिरयं यतीशस्तत्त्वार्थसूत्रं प्रकटीचकार । यन्मुक्तिमार्गे चरणोद्यतानां पाथेयमयं भवति प्रजानाम् । तस्यैव शिष्योऽजनि गृध्रपिच्छो द्वितीयसंज्ञास्य बलाकपिच्छः यत्सूक्तिरत्नानि भवन्ति लोके मुक्त्यंगनामोहनमण्डनानि ॥ अर्थात् ." उमास्वाति मुनिराजने तत्त्वार्थसूत्रकी रचना की। उनके शिष्य गध्रपिच्छ थे और उनका दूसरा नाम बलाकपिच्छ था।"
१- श्रीमूलसंघेऽजनि नन्दिसंघस्तस्मिन्बलात्कारगणोतिरम्यः ।
तत्राभवत्पूर्वपदांशवेदी श्रीमाघनन्दी नरदेववन्यः ॥ पदे तदीये मुनिमान्यवृत्तो जिनादिचन्द्रस्समभूदतन्द्रः । ततोऽभवत्पञ्चसुनामधामा श्रीपद्मनन्दी मुनिचक्रवर्ती ॥
..
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org