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पड़ता है कि इनका यह नाम प्रसिद्ध हो गया है । ' कोडकुण्ड शब्द कनडी भाषाका है। यह कुछ कर्णकटु मालूम होता है । इसे संस्कृतकवियोंने श्रुतिमधुर कुन्दकुन्दके रूपमें बदल दिया है । श्रीइन्द्रनन्दिसूरिकृत श्रुतावतारमें लिखा है किः--
एवं द्विविधो द्रव्यभावपुस्तकातः समागच्छन् । गुरुपरिपाट्या ज्ञातः सिद्धान्तः कुण्डकुण्डपुरेश्रीपद्मनन्दिमुनिना सोऽपि द्वादशसहस्रपरिमाणः। ग्रन्थपरिकर्मकर्ता षट्खण्डायत्रिखण्डस्य ॥ १६१ ॥ इन श्लोकोंसे श्रीपद्मनन्दिमुनिका निवासस्थान 'कुण्डकुण्डपुर' मालूम होता है । कर्णाटकमें और भी कई आचार्य ऐसे होगये हैं जो अपने निवासस्थानके नामसे प्रसिद्ध हैं। जैसे कि तुम्बुलूराचार्य । इनका वास्तविक नाम संभवतः वर्धदेव था; परन्तु तुम्बुलूर ग्राममें निवास होनेके कारण ये इसी नामसे अधिक प्रसिद्ध हैं। श्रुतावतारमें इनका उल्लेख करते समय लिखा है:--"अथ तुम्बुलूरनामाऽचार्योsभूत्तुम्बुलूरसग्रामे।"
श्रवणबेलगुलके ९ वें और १० वें शिलालेखमें कुन्दकुन्दाचार्यका जिक्र आया है। उनमें इनका सिर्फ इन्हीं दो नामोंसे उल्लेख किया है । और भी कई ग्रन्थोंमें इनके ये ही दो नाम मिलते हैं । परन्तु नन्दिसंघकी पट्टावलीमें इनके पाँच नाम बतलाये गये हैं:-१ कुन्दकुन्द, २ वक्रग्रीव, ३ एलाचार्य, ४ गृध्रपिच्छ, और ५ पद्मनन्दि । यथाः
...................... ततोऽभवत्पञ्चसुमामधामा श्रीपद्मनन्दीमुनिचक्रवर्ती ॥ आचार्यो कुन्दकुन्दाख्यो, वक्रग्रीवो महामतिः।
एलाचार्यो गृध्रपिच्छः, पद्मनन्दीति तन्नुतिः॥४॥ . अर्थात् पट्टावलीमें गृध्रपिच्छ, वक्रग्रीव और एलाचार्य ये तीन नाम अधिक हैं।
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