________________
३६४
पर्यायोंका नाम व्यवहार काल है कि जिनको हम घंटा, दिन, महिना, साल वगैरह करते हैं । पुद्गल परमाणु जितनी देर में अत्यन्त सूक्ष्म गति से एक कालाणु से दूसरे कालाणु पर जाता है, उतनी देरका नाम समय है । समय वक्तका सबसे छोटेसे छोटा भाग है । व्यवहार कालका हिसाब पुद्गलकी क्रिया पर किया गया है । संख्यात समयकी एक आवली होती है और तीन हजार सात सौ तेहत्तर (३७७३ ) उस्वासों का एक मुहूर्त होता है । ३० मुहूर्तका एक दिन होता है । १५ दिनका एक पक्ष, दो पक्षका एक महीना और १२ महीने का एक वर्ष होता है। वर्षोंकी एक गणना विशेषका — जिसकी संख्या जैन शास्त्रों में लिखी हुई है - एक पल्य होता है । १० करोड़ पल्यका एक सागर और दस कोड़ाकोड़ी सागरका एक अवसर्पिणी वा उत्सर्पिणी काल होता है। एक अवसर्पिणी और एक उत्सर्पिणी मिलकर अर्थात् वीस कोड़ीकोड़ी सागरका एक कल्पकाल होता है । अनादि काल से इस तरहके अनन्ता - नना कल्प बीत गये और आगेको बीतेंगे । भावार्थ, काल अनादि अनन्त है। न इसका आदि है न अन्त। इसकी कुछ संख्या वा सीमा नहीं हो सकती। आत्मा जब पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेता हैं अर्थात् परमात्मा हो जाता है, उस समय उसकी पूर्णता उसके ज्ञानमें झलकती है। बुद्धि और शब्दके द्वारा तो जितना कथन हो सकता है, उतना ही कथन किया जाता है। उसका पूरा ज्ञान तो केवलज्ञान प्राप्त होने पर ही होता हैं ।
आकाश ।
तीसरा अजीव द्रव्य आकाश है । आकाशं भी अनादि, अविनाशी, अनन्त और अखंड है । इसका स्वभाव अन्य द्रव्यों और
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International