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किसी भी परमाणुका अभाव नहीं हो सकता । स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण पुद्गल द्रव्यक्के अस्तित्वको प्रगट करते हैं । ये गुण ऐसे हैं कि जो और द्रव्यमें नहीं पाये जाते । ये पुद्गल के स्वभाव हैं । स्पर्शके आठ भेद हैं:- कड़ा, नर्म, रूखा, चिकना, ठंडा, गर्म, हल्का, भारी । प्रत्येक पुद्गलमें कुछ न कुछ स्पर्श अवश्य होगा, कुछ न कुछ रस अवश्य होगा, सुगन्धि व दुर्गन्धि अवश्य होगी और एक न एक वर्ण भी होगा। गरज यह कि पुद्गल स्पर्श, रस, गन्ध, और वर्ण इन चार गुणों से रहित कभी नहीं हो सकता । इसमें सन्देह नहीं कि कुछ पदार्थ ऐसे हैं और वे ऐसे परमाणुओंसे बने हुए हैं कि जिनमें चारों गुणोंकी अधिकता है और कुछ पदार्थ ऐसे परमाणुओं से बने हुए हैं कि जिनमें तीन व दो व एक ही गुणकी अधिकता है। जैसे धातु, पाषाण, मिट्टी ऐसे पदार्थों से बने हुए हैं कि जिनमें साधारणतः स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण चारों गुणोंकी अधिकता है । जलमें स्पर्श, रस, वर्णकी अधिकता है । वायुमें केवल स्पर्शकी अधिकता है।
शुद्ध पुद्गल परमाणु है । परमाणु इतना छोटा होता है कि उसके और खंड नहीं हो सकते । परमाणु अखंड है । परमाणुमें ये चारों गुण अर्थात् स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण होते हैं। किसी में कोई गुणं न्यून कोई अधिक या किसी में एक गुण जैसे स्पर्शके भेदों में से कोई भेद कम और कोई अधिक होता है । परमाणुओंके संयोग से स्कन्ध व समस्त पदार्थ पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आदि बनते हैं ।
परमाणु इतना सूक्ष्म है कि हमको आँखसे दिखाई नहीं देता । हम केवल स्कन्धको देखते हैं । अब प्रश्न यह होता है कि परमाओंका किस कारण से मिलना बिछुरना होता है। इसका कारण स्पर्शके दो गुण हैं - १ चिकनाहट और २ खुरदरापन । पर
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