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ज्ञानचन्द्र (ई० सन् १३५०) ११७. ये श्वेताम्बरसंप्रदायके थे ओर इन्होंने रत्नावतारिकाकी टिप्पणी रत्नावतारिक-टिप्पण लिखी; इसमें दिग्नाग इत्यादिके मतका खंडन भी है । इन्होंने अपने ग्रंथको अपने गुरु राजशेखरसूरि-जो सन् १३४८ ई० में विद्यमान थे-की आज्ञानुसार लिखा ।
गणरत्न ( ई० सन् १४०९) ११८ गुणरत्न श्वेताम्बरसंप्रदायक तपगच्छके थे। उन्होंने षट्दर्शनसमुच्चयकी टीका ष दर्शन-समुच्चय-वृत्ति अर्थात् तर्करहस्य-दीपिका और क्रियारत्नसमुच्चय नामक ग्रंथ लिखे।
११९ रत्नशेखरसूरिने लिखा है कि गुणरत्न देवसुंदरके शिष्य थे और उन्होंने अणहिल्लपट्टणमें सन् १३६३ ई० में सूरिकी पदवी प्राप्त की। देवसमुद्रसूरि मुनिसुन्दरसूरिके समकालीन थे; मुनिसुंदरसूरिकृत गुर्वावली सन् १४०७ में लिखी गई थी। गुणरत्न स्वयं कहते हैं कि उनका क्रियारत्नसमुच्चय सन् १४०९ ई० में लिखा गया था।
१२०. गुणरत्नकृत षट्दर्शनसमुच्चयकी टीकामें बहुतसे बौद्ध और हिंदू नैयायिकों और उनके ग्रंथोंका उल्लेख है।
धर्मभूषण (सन् १६०० ई० के लगभग ) १२१ ये एक दिगम्बर लेखक हैं। इन्होंने न्यायदीपिका ३०० वर्ष हुए लिखी। थी यशोविजयगणिने 'तर्काभास' में इनका उल्लेख किया है।
१२२. न्यायदीपिकामें मंगलाचरणके अतिरिक्त तीन प्रकाश हैं, अर्थात् (१) प्रमाण-सामान्य लक्षण, (२) प्रत्यक्ष-प्रमाण-लक्षण और (३) परोक्ष-प्रमाण-लक्षण ।
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