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३३१ किसी खास अवस्थाकी आवश्यकता नहीं है। जो काम सब कामोंके ऊपर है उसे बुढ़ापेके लिये उठा रखनेकी क्या जरूरत है ? लड़कपनमें, असली जवानीमें, भरी जवानीमें, बुढ़ापेमें, सब समय ईश्वरका ध्यान धरो, भक्तिभावके साथ उसका आश्रय ग्रहण करो। इसके लिये और कामोंके रोकनेकी जरूरत नहीं है। परोपकार देश-समाज-जाति और धर्मकी भलाई उसी ईश्वरकी प्रसन्नताके लिये करो। याद रहे, ईश्वरभक्तिके साथ, ईश्वरविश्वासके साथ जिस कामको करोगे वही सुसम्पन्न होगा, मंगलदायक होगा। उससे तुम्हारा यश बढ़ेगा, नाम होगा और पुण्य होगा। __ मुझे जान पड़ता है कि बहुतसे पाठकोंको मेरी ये बातें अच्छी नहीं लगती। वे मन-ही-मन कहते होंगे कि अभी तो हीराकी बातचीत हो रही थी, बीचमें यह ईश्वर और परोपकारका पचड़ा क्यों लगा दिया ? अभी तो बुढ़ापेकी ढेंकीमें मैं 'वंगदर्शन के लिये धान कूट रहा था, बीचमें यह ईश्वरका गीत क्यों गाने लगा ? मैं उन पाठकोंसे इसके लिये क्षमा माँगता हूँ। किन्तु, मेरी समझमें, हरएक काममें कुछ कुछ ईश्वरके गीत गाना अच्छा है। - अच्छा हो या बुरा, बूढेके लिये और कोई उपाय नहीं है। तुम्हारी हीरा चंपा जूही बेलाका झुंड अब मेरी तरफ देखता भी नहीं, मेरी छाँह छूना भी उसे नापसन्द है। तुम्हारे मिल, कोम्ट, स्पेन्सर, फुअर, बर्क मेरा मनोरंजन नहीं कर सकते । तुम्हारे दर्शनशास्त्र-तुम्हारा विज्ञान सब असार है-अंधेका शिकार है। इस वर्षाके दुर्दिनमें, आज कालरात्रिके इस अन्तिम कुलग्नमें, इस नक्षत्रहीन घोरघटामण्डित अमावास्याकी आधी रातमें, उस ईश्वर, उस अगतिके गति, दयासिन्धु, अकारण बन्धु ईश्वरके सिवा और कौन मेरी रक्षा करेगा ? इस संसार
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