Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 12
________________ ३३० विशेष महत्त्वके काम नहीं कर सकता । जवानी ढलते समय मनुष्य अनुभवी, बहुदर्शी, परिपक्कबुद्धि, लब्धप्रतिष्ठ और भोगवासनाहीन हो जाता है, इस कारण वही उसके काम करनेका समय होता है । इसी लिये मेरी सलाह है कि अपनेको बूढा समझ सब कामकाज छोड़ मुनिवृत्ति ग्रहण करना कदापि बुद्धिमानी नहीं ।। आप लोग शायद कहेंगे कि तुम्हारे कहनेकी कोई जरूरत नहीं, शारीरिक शक्तिके रहते कोई भी कामकाज नहीं छोडनेक! ! माताका. दूध पीनेसे लेकर अन्तिम विल ( वसीयतनामा ) लिखने तक सत्र लोग कामकाजकी चिन्तामें लगे रहते हैं । आपका यह कहना सच है, लेकिन मैं ऐसे कामकाजमें बूढोंको लगाना नहीं चाहता । जवानीमें जो कुछ किया जाता है सो अपने लिये । जवानी ढलने पर जो कुछ करना चाहिये वह पराये लिये । यही मेरी राय है । यह कभी न सोचना कि अभीतक मैं अपना काम ही पूरा नहीं कर सका, पराया काम क्या करूँ ? भाई, अपना काम तो अगर लाख वर्षकी आयु होती, तो भी पूर। न होता । मनुष्यकी स्वार्थपरता असीम है, उसका अन्त नहीं । इसीसे कहता हूँ कि बुढ़ापेमें, अर्थात् प्रौढावस्थामें अपना काम समाप्त समझकर पराये काम(जाति, समाज, देश और धर्मकी भलाई और उन्नति में मन लगाओ। यही यथार्थ मुनिवृत्ति है । इस समय जंगलमें जाकर पंचाग्नि तापने, जाडा गर्मी वर्षाका वेग शरीर पर सहने या निराहार रह कर शरीर नष्ट करनेकी जरूरत नहीं है। आप अगर कहें कि बुढापेमें भी जो अपने लिये या पराये लिये काम करेंगे तो ईश्वरका भजन कब करेंगे : परकाल कब बनावेंगे ! तो मैं कहता हूँ कि केवल बुढ़ापेमें क्यों; लड़कपनसे ही ईश्वरको हृदयमें स्थापित कर भजो-अपना परलोक बनाओ। इसके लिये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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