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मैन-हिन्दी-पूजा-काव्य की एक सुवीर्ष परम्परा रही है। हिन्दी के मध्य काल से इस काव्य रूप का निर्वाध प्रयोग हिन्दी में हुआ है। देव, साल, गुरु के अतिरिक्त विविध मुखी शान-शक्तियों पर आधृत जैन हिन्दी-पूजा-काव्य रचा गया है। विवेच्य काम्य में जैनधर्म से सम्बन्धित अनेक उपयोगी तयों एवं विचारों को सफल अभियंजना हुई है।
जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य ज्ञान का एक गम्भीर सागर है । उसको गम्मोरता का किनारा राज-पाठ से तो पाया जा सकता है, किन्तु भाव को गहराई में तल को स्पर्श करना सुगम तथा सरल नहीं है। ऊपर-ऊपर तैर जाना एक बात है और चिन्तन का गम्भीर अवगाहन कर अन्तस्तल को स्पर्श करना दूसरी बात है। मत दुबकी पर सुबकी लगाता हो आ रहा है और उसका यह सातत्य क्रम आज मो जारी है।
धर्म क्या है ? इस सम्बन्ध में दो मौलिक किन्तु बहुप्रचलित व्याख्याएं हैं। एक महर्षि वेदव्यास को-'धारणादम:' अर्थात् जो धारण किया करता है, उयार करता है अथवा जो धारण करने योग्य है, उसे ही वस्तुतः धर्म कहा जाता है। दूसरी व्याख्या है जैन परम्परानुमोक्ति- 'वत्पुसहावो' धम्मो अर्थात् वस्तु का अपना स्वरूप-स्वभाव ही उसका धर्म है। ___ मानव-जीवन के विकास का मूलाधार धर्म है। उससे उसका परिशोधन भी होता है। संसार में धर्म-तत्व के अतिरिक्त अन्य कोई तस्व अधिक पवित्र नहीं है। धर्म और सम्प्रदाय बोनों एक नहीं हैं। सम्प्रदाय धर्म का सोल है, धर्म नहीं है, पर जब भी धर्म को व्यावहारिक रूप से रहना होगा, तब वह किसी न किसी सम्प्रदाय में ही रहेगा। बैविक, जैन और बौर ये तीनों धर्म के आधारभूत सम्प्रदाय विशेष हैं। .