Book Title: Jain Hindi Puja Kavya
Author(s): Aditya Prachandiya
Publisher: Jain Shodh Academy Aligadh

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Page 289
________________ ( २७६ ) होती है । शब अर्थ और मानपूर्वक भगवान में बाल-भगवान की पूजा होने का भाग लेना और माय तो कर्म-मुक्त सिख अर्थ भगवान को बनाते हैं। वास्तव में अब भगवान की कल्पना से भी आगे बढ़कर भक्त बान-भगवान की पूजा करता है। पूजा का निश्चय नय की दृष्टि से यही अभीष्ट रूप है तथापि भक्त की मन:स्थिति के अनुसार यह कहाँ तक इसके अनुरूप अपने को प्रस्तुत कर पाता है उपास्य को पूर्ण परकीय सत्ता स्वीकार कर उसके द्वारा जागतिक उपलब्धियों के लिए जो पूजक पूजा करता है उसका सारा उद्योग अशुभोपयोग को जन्म देता है। मानपूर्वक जो उतरोत्तर स्वयं में जितना तप बनाने का उद्योग करता है उसका उतना ही अधिक शभोपयोग होता है। शुभोपयोग पुण्यबन्ध का कारण होता है। स्वयं में तप गुणों की स्थापना कर स्वयं की उपासना करें, अपने ही समन कर्मकालुष्य को प्रक्षालन करने का उद्योग वस्तुत: शुद्धोपयोग कहलाता है।' इस प्रकार पूजक पूजा-विधान में सबसे पहिले अपने आराध्य की स्थापना करता है। प्रत्येक पुजारी आराध्य के गुणों का स्तवन कर तीन बार १. विसयक साबोगाढो दुस्सुदि दुन्चितदुट्ठगोट्ठिजुदो। उग्गो उम्मग्गपरो उपओगे जस्स सो असुहो। -कुन्द-कुन्द प्राभूतसंग्रह, आचार्य कुन्दकुन्दाचार्य, प्रथमसंस्करण १६६०, जैन संस्कृति सरक्षक संघ, सोलापुर, पृष्ठ ३२ । २ जो जाणादि जिणिदे पेच्छदि सिद्ध तहेव मणगारे । जीवेसु साणुकंपो उपओगो सो सुहो तस्स ॥ -कुन्द कुन्द-प्राभूत संग्रह. पृष्ठ ३२ । ३. (क) शुद्धातम अनुभव जहाँ, सुमाचार तहाँ नाहि । करम करम मारग विषे,सिव मारम सिबमोहि। -मोक्षार, समयसार नाटक, बनारसीदास, बी दिमम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ़ (सौराष्ट्र), पृष्ठ २३३ । (ख) कम्मबन्धो हि णाम, सुहा सुह परिणाम हितो जाय दे। शुद्ध परिणामें हितो तेखि दोणं पि जिम्मूलक्सको। -जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष, भाग १, पृष्क ४५६ ।

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