Book Title: Jain Hindi Puja Kavya
Author(s): Aditya Prachandiya
Publisher: Jain Shodh Academy Aligadh

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Page 333
________________ ( ३४० ) नारियल - यह दक्षिण भारत का प्रमुख फल है। इसे भीकल', लांबली", नारिकेल' भी कहते हैं। पूजाकाव्य में अठारहवीं शती के पूजा रचयिता ज्ञानतराय विरचित 'भी सरस्वतीपूजा' नामक कृति में यह फल लोकल संज्ञा प्रयुक्त है।" उन्नीसवीं शती के मनरंगलाल प्रणीत 'भी सम्भवनाच जिनपूजा, श्री विमलनाथजिनपूजा" नामक कृतियों में यह फल नारिकेल, लांगली संज्ञाओं के साथ व्यवहुत है । इस शती के अन्य कवि रामचन्द्र, antarरल' और मल्लजो' मे श्रोफल, नारिकेल संज्ञाओं में इस फल का प्रयोग किया है । बीसवीं शती में सेवक", मुन्नालाल ", पूरणमल " १२ १. हिन्दी का बारहमासा साहित्य : उसका इतिहास तथा अध्ययन, डॉ० महेन्द्र सागर प्रचंडिया, सन १६६१, पृष्ठ २६५ । २. श्री पंडित शिखर चन्द्र जैन शास्त्री द्वारा सत्यार्थयज्ञ के पृष्ठ १३ पर श्री विमलनाथ जिनपूजा कृति की टिप्पणी में लांगली को नारियल की सज्ञा दी गई है । ३. बृहत् हिन्दी कोश, पृष्ठ ७०४ । ४. बादाम छुहारा, लोंग सुपारो, श्रीफल भारी ल्यावत हैं । - श्री सरस्वती पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, पृ35 ३७६ ॥ ५. श्री सम्भवनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल, सत्यार्थयज्ञ, पृष्ठ २६ । ६. ले क्रमुक पिस्ता लांगली अरु वाख बादामे घनी । - श्री विमलनाथ जिनपूजा, मनरंगलाम, सत्यार्थयज्ञ, पृष्ठ ६३ । ७. बादाम श्रीफल चार पूंजी, मधुर मनहर ल्यायये । - श्री सुमतिनाथ जिनपूजा, रामचन्द्र, चतुविशति जिनपूजा, नेमीचन्द्र वाकलीवाल, जैन ग्रन्य कार्यालय, मदनगंज (किशनगढ़) राजस्थान, अनेस् १९५१, पृष्ठ ४५ । ८. श्री ऋषभनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, चतुर्विशति जिनपूजा, बीर पुस्तक भहार, मनिहारों का रास्ता, जयपुर, पौष सं० २०१८, पृष्ठ १० । ९. केला अंब अना रही, नारिकेल ले दाव । - श्री क्षमावाणी पूजा, मल्लजी, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ २५७ । १०. श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक, जन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १६ । ११. श्री खण्डगिरिक्षेत्रपूजा, मुन्नालाल, जैनपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ १५६ । १२. श्री चांदनगांव महावीर स्वामीपूजा, पूरणमल, जैनपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १६० ।

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