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रामचा और बाताबररत्न द्वारा मशः प', ऐरावत', हस्ती' मोर पाराज नामक संकाओं के साथ प्राकृतिक वर्णन एवं सवारी के लिए हमा है।
बोसयों शती में पूजा कवयिता मुन्नालाल और जवाहरलाल द्वारा हावी तथा गन संसानों के साथ क्रमशः 'भौषमगिरिक्षेत्रपूजा एवं श्री सम्मेवाचल पूर्णा नामक कृतियों में हाथी गुफा तथा पुर-प्रसंग में प्रयोग सफलतापूर्वक हुआ है।
गर्दभ-मम अपनी सिधाई के लिए प्रसिख है। लोकजीवन में इसके स्वर-भंग की प्रसिद्धि कम महत्वपूर्ण नहीं है। जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में गर्दन का म्यवहार अठारहवीं शती के उत्कृष्ट पूजा पिता बानतराय द्वारा प्रणीत
१. गजपुरे गज साजि सवें त,
गिरि जखें इतमें जजि हों अवें। --श्री शांतिनापजिनपूजा, वृदावन, राजेश नित्यपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ
२. ऐरावत सम अति क्रोधवान,
सनमुख आवत दंती महान । -~-श्री अनंतनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल, ज्ञानपीठ पूजांगलि, पृष्ठ
३५७ । ३. हस्ती घोटक बैल,
महिष असवारी धायो।
-श्री चन्द्रप्रभु पूजा, रामचन्द्र, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ६५ । ४. चढ़े गजराज कुमारन संग ।
सुदेवत गंगतनी सुतरंग ।। -श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, बख्तावररल, ज्ञानपीठ पूजिलि, पृष्ठ
३७५ । ५. तिनमें इक हाथी गुफा जान,
प्राचीन लेख शोभे महान् ।
-श्री बण्डगिरिक्षेत्रपूजा, मुन्नालाल, जनपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १५७ । ६. भजे मज जुत्व जू सिंहहि पेखि।
परे ज्यों नाग गरुड़ को देखि॥ -श्री सम्मेदाचल पूजा, जवाहरलाल, बहजिनमानी संग्रह, पृष्ठ ४५२ ।