Book Title: Jain Hindi Puja Kavya
Author(s): Aditya Prachandiya
Publisher: Jain Shodh Academy Aligadh

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Page 360
________________ सवार . अधिमान भायें, पधार, विराजमान हों, अवतरित हों। भानरूपी पदार्थों को प्रलमा जानने वाला मर्यादा माहित ज्ञान अवधिज्ञान है अर्थात् जो शानद्रव्य, क्षेत्र, कालभाव को मर्यादा के लिए रूपी पदार्थ को स्पष्ट व प्रत्यक्ष जाने वह बबधिशान है। भाठ भागों वामा, काठ छन्दों का समुदाय, यषा.. मंगलाष्टक, महावीराष्टक दृष्टाष्टक, प्रादि। निश्चय से तो समस्त पर-पदार्थो से दृष्टि हटाकर अपनी बारमा की पक्षा, ज्ञान और लीनता ही मुमुक्षु श्रावक के मूल गुण हैं पर-व्यवहार से मब त्याम, मांस त्याग, मधु त्याग, बोर पाँच उदुम्बर-बड़का फम, पीपल का फल अमर, कठूमर (गूलर) मोर पाकर फल-फलों के त्याग को मष्टमून गुण कहते हैं। जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल ये पाठ द्रव्य अष्टाव्य कहलाते हैं, इनका प्रयोग जनपूजा-उपासना में किया जाता है। आठ फूल, अष्टपुष्पी पूजा के काम में जाने वाले पाठ फूम, पूजा का यह प्रकार जनों में प्रचलित नहीं है। बाठ कर्मों में तीसरे कम वेदनीय का एक भेद बसाता कर्म है इसके उदय से संसारी जीव दु:ख का अनुभव करता है। रत्नत्रयधारी जीव चार बातिया को कर नय करके अनंत चतुष्टय प्राप्त कर संसार के बावाममन से छुटकारा पाकर अक्षय पद की प्राप्ति करता है; बनवपद वह पद विशेष है वहाँ बीव निराकुल, बानंदमय, शुद्ध स्वभाव का परिणमन करता है तथा सम्यक्त्व, शान-दर्शनादिक आत्मिक गुण पूर्णत: अपने स्वभाव को प्राप्त करता है। बारमा के वक्षों में से आकिंचन्य का क्रम ब्रह्मचर्य से पूर्व बाता है, मह, परिग्रह और अहंकारों के अभाव में धर्म कामक्षण प्रकट होता है, इस पष्टपुष्प बसाता Lमपब

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