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बीसवी सती के न-हिन्दी-पूजा-काव्य में ऊँट का प्रयोग मारवाही रल्लिखित है।
गज-यह भारतीय पशु है । यह पोत और काले रंग का पाया माता है। इसके कान मऔर ही होते हैं। हिन्दी काव्य में इस पर का प्रयोग निम्न रूपों में उपलब्ध है
१. संवेदनशील प्राणी के रूप में २. मतवालेपन के लिए ३. पूर्वभव के लिए ४. मालंकारिक रूप में ५. प्रकृति वर्णन के रूप में ६. स्वप्न संवर्म में ७. पुत्रजन्म प्रतीक अर्ष में ८. प्रमत्त बाल के लिए
जन-हिन्वी पूजा-काव्य में अठारहवीं शती से इस पर का प्रयोग द्रष्टव्य है । कविवर बानतराय प्रमीत 'श्री बृहत् सिद्ध चक पूजा भाषा में पज का उल्लेख 'सवारी के लिए मिलता है।
उन्नीसवीं शती में इस पशु का व्यवहार कविवर धावन, मनरंगलाल,
१. प्रभु में ऊंट बदल मेंसा भयो,
ज्या पे लदियो भार अपार हो । -श्री वादिनाथ जिनपूजा, सेवक, जनपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १ । पुन्नीगज पर चढ़ चामन्ता, पापी नंगे पग धावन्ता। पुन्नी के शिर छत्र फिरावे, पापी शोसले बाये। -श्री बाब सिरकमाभावा, थानतराय, गपूजापाठ संसह, पृष्ठ