Book Title: Jain Hindi Puja Kavya
Author(s): Aditya Prachandiya
Publisher: Jain Shodh Academy Aligadh

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Page 347
________________ ( २४४ ) सिंह--यह शक्ति और साहस शौर्य का पशु है। अपनी वीरता और साहस के कारण यह 'वन का राजा' कहलाता है। इसकी अनेक उपजातियाँ होती है । केहरि सिंह, चीता, व्याघ्र परन्तु यहाँ 'सिंह' कोटि में हो वर्णन किया गया है। हिन्दी साहित्य में इस पशु का निम्न प्रकार से प्रयोग हुआ है (१) प्रकृति वर्णन के रूप में (२) तीर्थकर चिन्ह के रूप में (३) आलंकारिक रूप में (४) पूर्वभव के रूप में (५) स्वप्न सम्बर्भ में (६) प्रतीक रूप में (७) हिसक रूप में जैन - हिन्दी- पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के पूजाकवयिता वृम्बाबन ने 'हरि' संज्ञा के साथ 'श्रीमहावीरस्वामी पूजा' नामक रचना में चिह्न के लिए प्रयोग किया है।' बसव शती के पूजा रचयिता पूरणमल और जवाहरलाल ने इस जीव का उल्लेख क्रमशः शेर और सिंह नामक संज्ञाओं के साथ 'श्री चांदनगाँव महावीर स्वामी पूजा" एवं "श्री सम्मेाचलपूजा" नामक रचनाओं में क्रमशः तीर्थकर पग-चिन्ह तथा हाथी- मयंक के रूप में किया है । १. श्री मसवीर हरं भवपीर, मरं सुखसीर अनाकुलताई । केहरि अंक मरीकरदंक, नये हरिपंकति मौलिस आई ॥ - - श्री महावीर स्वामी पूजा, बृन्दावन - राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ १३२ । २. यहाँ आवक जन घडु गये जाय, किये दर्शन करि मन बच काय । है चिह्न शेर का ठीक जान, निश्चय हैं ये श्रीवर्द्धमान || - श्री दनगांव महावीर स्वामीपूजा, पूरणमल, जैनपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १६३ । ३. भजे बज जुत्य जु सिंहहि पेवि । हरे ज्यों नाथ गरुड़ को देखि । -- श्री सम्मेदाजलपूजा, जवाहरलाल, बृहजिनवाणी संग्रह, पृष्ठ ४६२ ।

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