Book Title: Jain Hindi Puja Kavya
Author(s): Aditya Prachandiya
Publisher: Jain Shodh Academy Aligadh

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Page 353
________________ ( १६.) इसकी मन्या पूजामयिका मतरंगलाल एवं मामला आम समर-पये, का प्रयोग शमशः भौरा तथा मलि संज्ञाओं में शुमार तमासन के लिए बीसौं शती में भ्रमरपक्षी का उल्लेख मधुकर नामक संशा के साथ कविवर जवाहरलाल विरचित 'श्री अथ समुन्यपूजा' नामक पूजाति में हुआ है। हस-बड़ी-बड़ी झीलों में रहने वाला एक सफेव जलपक्षी है। कवि समय के अनुसार यह दूध से पानी अलग कर देता है। अधिकार यह मानसरोवर झील में पाया जाता है। हिन्दी वाक मब में हंस का उपयोग निम्न प्रकार से उपलब्ध है : १. सरल स्वभाव के लिए २. प्रतीक रूप में ३. मालंकारिक प्रयोग के रूप में ४. प्रकृतिवर्णन प्रसंग में ५. सुन्दर चाल के लिए जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में इस पक्षी के अभिदर्शन बोस शो के पूजारचयिता भगवानदास विरचित 'श्री तत्वार्थ सूत्रपूजा' नामक कृति के. 'जयमम्मा' प्रसंग में होते हैं। १. वशगध भौंरा पुजता पर, करत रख सुखवासिनी। ---श्रीनेमिनापजिनपूजा, मनरंगलाल, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ३६६७ । २. जाकी सुगन्ध यकी अहो, अलि गुंजते आवे घने। -श्री सम्मेद शिखर पूजा, रामचन्द्र, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १२७ । ३. कुन्द कमलादिक चमेली, गन्धकर मधुकर फिरें। -श्री अथ समुच्चयलघुपूजा, जवाहरलाल, बृहजिनवाणी संग्रह, पृष्ठ ४८७ । ४. वृहत हिन्दी कोण, पृष्ठ १६०३ । ५. दलधर्मबहे शुभ हंस रा, प्रणमामिसूत्र जिनवाणि वरा। -श्री तत्वार्थ सूत्रमूजा, महकानास, जन पूजासठ संबह पाठ,४१२ ।

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