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पशु-वर्णन
पशु शब्द को वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता है। भावारत्न में बनाव ने इसका लक्षण इस प्रकार लिखा है- 'लोभ बल्लांगुलवत्वं पशुत्वं' लोम और लांगुल विशिष्ट जन्तु को पशु कहते हैं । स्थूल रूप से समस्त प्राणियों या देहधारियों को दो भागों में बाँटा जा सकता -अपक्ष और दूसरा सपक्ष | अपक्ष सभी पशु के अन्तर्गत दिये गये हैं और सपक्ष में पक्षी । इस दृष्टि से मेढक, मछली और झीगुर भी पशुओंों में रखे गए हैं। प्रकृति में मानव को अपने अलावा अन्य प्राणियों से भी परिचित होना पड़ता है । पूजा - साहित्य में व्यवहृत पशुओं की स्थिति पर यहाँ विचार करना हमारा मूलोद्देश्य है
उरग - यह विवला जीव है। इसके नेत्र और कान एक ही क्षेत्र प्रदेश में होते हैं अस्तु इसे 'शुभवा' भी कहा जाता है। इस जीव का प्रयोग हिम्दी साहित्य में निम्न रूपों में मिलता है :
१. नाग कथा के रूप में
२. आलंकारिक प्रयोग के रूप में
३. बल स्वभाव की अभिव्यक्ति के लिए
४. पूर्वभव के रूप में
५. हिंसात्मक वृति की अभिव्यक्ति के लिए
६. प्रकृति प्रसंग में
जैन- हिन्दी- पूजाकाव्य में उरण का प्रयोग अठारहवीं शती में डरन', नाग
१. हिन्दी का बारहमासा साहित्य : उसका इतिहास तथा अध्ययन, डॉ० महेन्द्रसागर प्रचण्डिया, पृष्ठ १६४ ।
२. अति सबल मद कंदर्प जाको,
क्षुधा - उरम अमान है ।
-श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, धानतराय, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १५ । काम-नाम विषधाम,
नाश को गरुड़ कहे हो ।
-श्री बीस तीर्थकर पूजा, धानवराय, जेनपूजापाठ संग्रह पृष्ठ ३४ ।