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: बीसवीं शती के पूजा-कवि सेवक,' आताराम, मेस और रस्त बारा मुरमाना, हषमाला, मणिमाला और आनंद-माला नामक अभिप्राय से मानूषण का व्यवहार हमाहै।
बस्त्र एवं आभूषण की माई पूनाकाव्य में सौन्दर्य प्रसाधन का उल्लेख मिलता है । मब यहाँ हमें प्रयुक्त सौन्दर्य प्रसाधनों का बकारादि कम से मध्ययन करना अभीप्सित है।
मगर-यह सुगंधित पदार्थ है जो धूप, दशांग इत्यादि में पड़ता है। इसी से अगरबत्ती बनती है।
जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में अठारहवीं शती के पूजाकार बानतराय विरचित 'श्री पंचमेव पूजा'", श्री सोलहकारण पूजा, श्री बालवणधर्म पूमा और श्री रत्नत्रय पूजा नामक पूजाओं में अगर का व्यवहार पूजोपकरण के अर्थ में सुगंधित वातावरण बनाने के लिए हुआ है। १. प्रभु इह बिधि काल गमायके, फिर माला गई मुरझाय हो ।
-श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ६८ । २. जिन मंदिर की वेदी विशाल, दरवाजे तीनों बहु सु डाल । .
ता दरवाजे पर द्वारपाल, ले मुकुट बड़े पर हाथ माल । -श्री सोनागिरिसिवक्षेत्रपूजा, आशाराम, जैनपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ
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३. षट तूप छज मणिमाल पाय ।
घट धून धूम विग सर्व छाय ॥
-श्री अकृत्रिम त्यालयपूजा, नेम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ २५५ । ४. मुनि दीन दयाला सब दुख टाला।
आनंद माला सुखकारी॥ -श्री विष्णुकुमारमहामुनिपूजा, रघुसुत, रामनित्यपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ
२७१। ५. बेऊ अगर बमल अधिकाय ।
-श्री पंचमेरु पूजा, पानतराय, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ५३ ॥ ६. श्री सोलहकारण पूजा, पानसराय, अनपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ ६० । ७. श्री दशलक्षण धर्मपूजा, पानतराय, जेन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ६३ । ८ श्री रत्नत्रयपूजा, बानतराय, जैन पूजापाठ संबह, पृष्ठ ७० ।