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विवध काव्य में विभिन्न शतानियों में भिन्न संसानों के साथ यह आपण प्रयुक्त है। उन्नीसवों शती के पूजाकार शावन प्रणीत 'मोचनम् जिनपूजा" नामक कृति में हार संज्ञा के साप तथा 'श्री शांतिमाय जिनपूवार रचना में गुणों को रत्नमाला के रूप में यह आभूषण प्रयुक्त है। इस शती के अन्य कवि रामचन्द्र ने 'श्री चन्द्रप्रभु जिनपूजा" में माला तथा 'श्री अनंतनाब जिनपूजा में कुंव हार का पूजा-प्रसंग में प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त कमलनयन रचित 'श्री पंचकल्याणक पूजापाठ' में 'माल' संज्ञा में हार गहना व्यवहृत है।
१. जिन अंग सेत सित चमर ढार । सित छत्र शीश गल-गुलक हार ।।
-श्री चन्द्रप्रभ जिनपूजा, वदावन, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ३३७ । २. मोक्ष हेतु तुम ही दयाल हो।
हे जिनेश ! गुन रत्नमाल हो॥ ~श्री शांतिनाथजिनपूजा, बदावन, राजेनित्यपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ
११४॥ ३. पूरन भायु जु धाय, तबै माला मुरमानी।
आरति तें तजि प्राण, कुसुम भव पाय अज्ञानी । -~-श्री चन्द्रप्रभुजिनपूजा, रामचन्द्र, राजनित्यपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ ६५। स्वेत इन्दु कुन्द हार खंड ना अखित्तही। दुर्ति खंकार पुज धारिये पवितही ॥ ~श्री अनंतनाथजिनपूजा, रामचन्द्र, राजेशनित्यपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ
१०५। ५. गल किकिन हो माल बधीं सुविशाल सरिस रवि को करें।
शिर सोहे हो वालि चलत गज चालि मंदर्यात को धरें। ~श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तनिधित।