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वेशभूषा, आभूषण और सौन्दर्य-प्रसाधन
पूजाकाव्य में अनेक आभूषणों एवं विविध वस्त्रों का प्रयोग हुमा है। इन मानूषणों में अधिकांश इस प्रकार के हैं जो धातु निर्मित हैं, कुछ पुष्पादि विनिर्मित हैं, यहाँ हम वस्त्र, मामषण तथा सौन्दर्य प्रसाधनों की संक्षेप में चर्चा करेंगे।
ध्वजा-पताका या झंडा को ध्वमा कहते हैं। सेना, रथ, देवता मावि का चिन्हमत स्वरूप बजा है। जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में ध्वजा का प्रयोग चिन्ह के रूप में उन्नीसवीं शताब्दी के पूजा कवि कमलनयन द्वारा प्रणीत 'भी पंचकल्याणक पूना पाठ' नामक पूजा में हुआ है।'
लंगोटी-लंगोटी कमर पर बाँधने का वस्त्र विशेष है जिससे उपस्व और नितंब प्रदेश आवृत रहा करते हैं । जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में अगरहवीं शती के पूजाकार पानतराय ने आकिवनय धर्म की व्याख्या करते हुए कहा है कि जिस प्रकार शरीर में कांस सालती है उसी प्रकार दिगम्बर मुनि के लिए मंगोटी की चाह भो दुःख देती है।
वस्त्रों की भांति विवेच्य काग्य में आभूषणों का उल्लेख मिलता है । अब यहां प्रयुक्त माभूषणों का अकारादि कम से अध्ययन करेंगे। ___ आरसी-यह अंगूठे में पहनने का आभूषण है । इसमें शीशा लगा रहता है। यह नीचे से खुल भी जाती है। इसके अन्दर महिलायें इन का काया और होठ रंगने आदि की सामग्री रखा करती हैं। शीशा में नायिका अपना
१. पुनि ध्वजा भूमि पांचई पेखि । बरनन साकों कछु करों लेष ।।
लघु दौरष ध्वजा अनेक भांति । दशचिन्ह सहित सोमै सुपांति ॥
-श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तलिखित । २. उत्तम माकिचन गुण ब्रानो, परिग्रह-चिन्ता दुख ही मानो।
फांस तनकसी तन में साले, चाह लगोटी की दुख भाले ।। -बी दशलक्षण धर्मपूजा, बानवराय, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ६७ ।