________________
नगर - वर्णन
जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में नगर तथा तीर्थ वर्णन मी उल्लेखनीय हैं। जिस क्षेत्र में सीकर के गर्म, जन्म, तप तथा ज्ञान नामक कल्याणकों में से एक अथवा अनेक कल्याणक होते हैं उस क्षेत्र को अतिशय क्षेत्र कहा जाता है और जिस क्षेत्र से जीव मुक्ति अथवा मोक्ष प्राप्त करता है उसे सिद्धक्षेत्र की संज्ञा दी गई है। पूजाकाव्य में अतिशय और सिद्ध दोनों ही क्षेत्रों का वर्णन हुआ है। अब यहाँ नगर तथा तीर्थस्थलों की स्थिति और माहात्म्य विक विवेचन अकारादि क्रम से करेंगे ।
अयोध्या (श्री ऋषभदेवपूजा ) ' - यह नगर उत्तरप्रदेश में २६.४८ उत्तरी अक्षांश और ८२.१४ पूर्वी देशान्तर पर बसा है। अयोध्या मंनियों का आदि नगर और आदि तीर्थ है।" यहीं पर आदि तीर्थंकर ऋषभदेव जी के गर्भ व जन्म कल्याणक हुए थे। इस प्रकार अयोध्या धर्म-कर्म का पुष्यमय अतिशय क्षेत्र है ।
कम्पिला (श्री विमलनाथजिनपूजा) - कम्पिला जो का प्राचीन नाम काम्पिल्य है । यह अतिशय क्षेत्र उत्तर प्रवेश के फर्रुखाबाद जिले में कायमगंज के निकट अवस्थित है। इस क्षेत्र में तेरहवें तीर्थंकर भगवान विमलनाथ जी के गर्म, जन्म, तप और ज्ञान कल्याणक हुए थे। इस प्रकार यह चार कल्याणकों का अतिशय क्षेत्र है ।
कुण्डलपुर (श्री वद्धमान जिनपूजा) - यह
रोड, बडगांव, पटना में स्थित है। यहां चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ था ।
१. श्री ऋषभदेवपूजा, मन रंगलाल, सत्यार्थयज्ञ, पृष्ठ १० ।
२. जैन तीचं बीर उनकी यात्रा, डा० कामताप्रसाद जैन, भारतीय दिगम्बर जैन परिषद, पब्लिशिंग हाउस, देहली, तृतीय संस्करण फरवरी १९६२, पृष्ठ ३३ ।
३. श्री विमलनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल, सत्यार्थश, पृष्ठ ११ ।
४. श्री वर्तमान जिनपूजा, मनरंगलाल, सत्यार्थमत्र, पृष्ठ १६६ ।