________________
( २१२ )
है। इस शती के उत्कृष्ट पूजाकवि वानतराय की पूजा-काव्य-कृतियों में हरिगीतिका छंद प्रयुक्त है ।"
उन्नीसवीं शती के कविवर वृंदावन', मनरंगलाल', बख्तावररत्न* और कमलनयन की पूजा रचनाओं में इस छंद का व्यवहार परिलक्षित है । बीसवीं शती के कवि दौलतराम और भगवानदास को पूजाकृतियों में हरिगीतिका छंद का सफल प्रयोग हुआ है ।
अठारहवीं शती में रचित पूजाकाव्य में शान्तरस निरूपण के लिए यह छंद सर्वाधिक व्यवहृत है ।
१. शुचि क्षीर दधि समनीर निरमल, ससार पार उतार स्वामी, जोर संमेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुर पूजो सदा चोबीस जिन निर्वाण भूमि निवास को ।।
कनक झारी में भरों । कर विनती करों । कैलास को ।
-श्री निर्वाण क्षेत्रपूजा, दयानतराय, संगृहीतग्र थ राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, प्रकाशक - राजेन्द्र मैटिल वक्स, हरिनगर, अलीगढ़, संस्करण १९७६, पृष्ठ ३७३ ।
२. श्री महावीर स्वामीपूजा,
वृन्दावन,
संगृहीत'थ-ज्ञानपीठपूजांजलि, प्रकाशक - अयोध्या प्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, सस्करण १६५७ ई०, पृष्ठ ३३३ ।
३. है नगर भद्दिल भूप द्रढ़रथ, सुष्टु नंदा ता त्रिया | शोतलनाथ सुत ताके प्रिया ॥ हेम-वरण शरीर है ।
तजि अचुत दिवि अभिराम starकुवंशी अंक श्री तरु,
धनु नवे उन्नत पूर्वलख इक, आय सुभग परी रहे ||
- श्री शीतलनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल, संगृहीत ग्रंथ-राजेश नित्य पूजा पाठ सग्रह, राजेन्द्र मैटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, संस्करण १९७६ पृष्ठ ६७ ।
४. श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, संगृहीतग्रंथ -ज्ञानपीठ पूजांजलि, प्रकाशकअयोध्याप्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, संस्करण १६५७ ई०, पृष्ठ २७१ ।
५. श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तलिखित ।
६. श्री पावापुर सिद्धक्षेत्र पूजा, दौलतराम, संगृहीतग्रंथ जैन पूजा पाठ संग्रह, प्रकाशक- भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १४७ ।
७. श्री तत्वार्थ सूत्र पूजा, भगवानदास, संगृहीतग्रंथ-जैन पूजा पाठ संग्रह, प्रकाशक - भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ४१० ।