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पूजा - काव्य में इस वृत्त का व्यवहार उन्नीसवीं शती के सशक्त पूजा कवि वृंदावन की पूजा काव्यकृति 'श्री शांतिनाथ जिनपूजा" एवं श्री 'पद्मप्रभु जिनपूजा" में परिलक्षित है ।
atna शती के कवि भगवानदास विरचित पूजा 'श्री तत्वार्थ सूत्र पूजा' में इस वृत के अभिदर्शन होते हैं ।'
जैन - हिन्दी पूजा काव्य में व्रतविलम्बित वृत्त का प्रयोग भक्तमात्मक प्रसंग में हुआ है ।
मत्तगयन्द
तेइस वर्षो के छन्द विशेष का नाम मत्तगयन्द वृन्न है। हिन्दी में यह श्रृंगार, शान्त तथा करुणरसों की अभिव्यक्ति के लिए अधिक प्रचलित रहा है।
जैन-हिन्दी पूजा- काव्यों में इस वृत्त का व्यबहार उन्नीसवीं शती
१. असित सातय भादव जानिये, गरभ-मंगल ता दिन मानिये । सचिकियो जननी-पद चर्चन, हम करे इत ये पद अर्चनं ।
-- श्री शान्तिनाथ जिनपूजा, वृन्दावन, सगृहीत ग्रन्थ- राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ, १९७६, पृष्ठ ११२ ।
२. श्री पद्मप्रभु जिनपूजा, वृन्दावन, संगृहीत ग्रन्थ राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल व, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ ८२ ।
३. सुरसरी कर नीर सु लायके, करि सु प्रासु कुम्भ भराय के । जजन सूत्रहि शास्त्रहिं को करो, लहि सुनत्व ज्ञानहिं शिव वरो ।
- श्री तत्वार्थ सूत्र पूजा, भावानदास, संगृहीन ग्रंथ -जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, न० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ४१० ।
४. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, ज्ञान मण्डल लिमिटेड, बनारस, प्रथम संस्करण, सवत् २०१५, पृष्ठ ८२३ ।