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( २९५ ) सम्बोधनकारक-(पिया के लिए जिसे सम्बोधित किया जाय) है,
१८. स्तम छिमा गहो रे भाई, इह भव नस पर भव सुखदाई।
(श्री दशलमणधर्म पूजा, यानतराय) १६. तुम पातर हे सुखगेह, भ्रमतम खोबत हो।
(श्री महावीर स्वामी पूजा, दावन) २०. हे निर्मल देव ! तुम्हें प्रणाम, हे मान बीप मागम ! प्रणाम ।
(श्री देवशास्त्र गुरुभूमा, 'युगल') क्रियापद__ 'धातु मूल रूप है, जो किसी भाषा की किया के विभिन्न रूपों में पाया जाता है। जा चुका है, जाता है, जायेगा इत्यादि उदाहरणों में जाना' समान तत्व है। धातु से काल, पुरुष और लकार से बनने वाले रूप क्रियापद हैं।
विवेव्य काव्य की भाषा में कियापदों की स्थिति स्पष्ट और सरल है। संस्कृत को साध्यमान (विकरण) क्रियाओ से बनने वाली कुछ क्रियाएँ शताब्दि क्रम से सोदाहरण नीचे दी जा रही हैं(१) ध्या (१८ वीं शती)-(१) ये भवि ध्याइये।
(यानसराय, श्री देवशास्त्र गुरुपूजा) (२) बत्सलअंग सदा जो ध्यावे।
(व्यानतराय, श्री सोलहकारण पूजा) (१६ वीं शती)-(१) भविजन नित ध्यायें।
(बख्तावररत्न, भी अप चणियति समुच्चय पूजा) (२) चरन संभव जिनके ध्याइये।
(बलावररस्म, भी सम्भवनाप जिनपूजा) (२० वो सती)-(१) सितम्यान ध्याय।
(बोलतराम, श्री चम्पापुर सिट क्षेत्र पूजा) (२) महानत ध्यायके, व्यायके।
(कृषिलाल, पी पार्षनाव पूना)