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जैन-हिन्दी-पूजा -काव्य में अनंनसेवर वृत्त का व्यबहार बीसवीं शती के कविवर कुजिनाल द्वारा भक्त्यात्मक प्रसंग में शांतरस के परिवाक के लिए किया है।"
कवित्त
मुक्तक दण्डक का एक मेद कवित्त वृल होता है ।" हिन्दी में विभिन्न रसों में सफलता पूर्वक प्रयुक्त होने परभी शृंगार और वीर रसात्मक काव्यामिव्यक्ति के लिए यह विशिष्ट वृत्त है ।
जैन - हिन्दी-पूजा - काव्य में उन्नीसवीं शती के कविवर रामचन्द्र ने कवित वृत्त का व्यवहार किया है।"
९. अलोक लोक की कथा विशेष रूप जानते ।
तिनेहि 'कु जिलाल' घ्यावते सुबुद्धिवान है ।। अनंत ज्ञान भूप वे अखण्ड चण्ड रूप वे । अनूप हैं अरूप सो जिनेन्द्र वर्धमान है ||
-श्री भगवान महावीर स्वामी पूजा, कु जिलाल, संगृहीतग्रंथ - नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह, सम्पा० व प्रकाशिका - ब्र० पतासीबाई जैन, गया (बिहार), संस्करण २४८७, पृष्ठ ४६ ।
२. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र बर्मा, ज्ञान मण्डल लिमिटेड, बनारस, संस्करण सं० २०१५, पृष्ठ २८३ ।
३. शिखर सम्मेद जी के बीस टोंक सब जान,
तास मोक्ष गये ताकी संख्या सब जानिये ।
asari कोडा कोडि पैसठ ता ऊपर, जोडि छियालीस अरब ताकौ ध्यान हिये आनिये । बारा से तिहत्तर कोड़ि लाख ग्यारा से वैयालिस, और सात से बोतीस सहस बखानिए । संकड़ा है सात से सत्तर एते हुये सिद्ध, तिनकू सु. नित्य पूज पाप कर्म हानिये ||
-धो सम्मेद शिखर पूजा, रामचन्द्र, संगृहीत ग्रंथ जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२. नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १३७ ।