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भी देवशास्त्र गुणा' के 'मयमाला' अंश में जीवन को अस्थिरता को व्यक्त करते हुए उपासना के अतिरिक्त जोवन-बम को निस्सारता व्यक्त की है। इस अभिव्यक्ति में करुणरस का कहना है जो कालांतर में निवेंदरूप में परिणत हो जाता है।' . इस प्रकार पूजाकाव्य में पूर्णतः शान्सरस का परिपाक हुआ है। रस की इस पाकविकता में सोमा-श्रृंगार, उत्साह-पोर, तवा करण आदि रसों के अभिवशंन होते हैं।
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भववन में जीमर घूम चुका, कण-कण को जी भर देखा। मृग-सम मुग-तृष्णा के पीछे, मुझको न मिली सुख की रेखा ॥ . मूठे जग के सपने सारे, झूठी मन की सब आशायें। तब-जीवन-यौवन अस्थिर है, मण भंगुरपल में मुरझाए । -श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर जैन 'युगल', संग्रहीतग्रंथ-जन पूजा पाठ संग्रह, प्रकाणक-भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी ठेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ३०।