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अतिरिक्त कविवर मुम्नालाल विरचित 'श्रीखण्ड गिरि क्षेत्र पूजा' नामक काव्य मैं भी यह छन्द प्रयुक्त है "
जैन- हिन्दी- पूजा - काव्य में उपमान छन्द का प्रयोग शांतरस के उम्र के में हुआ है । हीरक
हीरक मात्रिक समछेद का एक भेव है। जैन- हिन्दी-पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के कविवर बख्तावर रत्न ने 'श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा' नामक कृति में हीरक छंद का व्यवहार शांतरस के परिपाक में किया है ।"
रोला
रोला मात्रिक समछंद का एक भेद है। जैन- हिन्दी-पूजा-काव्य में उझीसवीं शती के कविवर वृन्दावन' और मनरंगलाल तथा बीसवीं
१. श्री खण्ड गिरिक्षेत्र पूजा, मुन्नालाल, संगृहीतग्रथ जैन पूजा पाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं ६२, नलिनी सठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १५५ । २. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, प्रकाशकज्ञानमण्डल लिमिटेड, बनारस, संस्करण सं० २०१५, पृष्ठ ८६६ ।
३. क्षीर सोम के समान अबुमार लाइने ।
हेमपात्र धारिके सु आपको चढाइये || पार्श्वनाथ देवसेव, आपकी करु सदा । दीजिए निवास मोक्ष, भूलिये नही कदा ||
- श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, सगृहीतग्रथ राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, संस्क० १६७६, पृष्ठ ११८ ।
४. हिन्दी साहित्य कीश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, प्रकाशकज्ञानमण्डल लिमिटेड, बनारस, संस्क० संवत् २०१५, पृष्ठ ६७६ ।
५. पदमराग मनिवरन धरन, तन तंग अढ़ाई ।
शतक दण्ड अध खण्ड, सकल सुर सेवन छाई ॥ धरनि तास विख्यात, सुसीमाजू के नंदन । पदम चरन धरि राग, सुथापो इति करि बंदन ॥.
-श्री पदम प्रभु जिनपूजा, वृंदावन, संगुहीतग्रंथ-राजेश नित्यपूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ ८२ ।
६. श्री अथ सप्तष पूजा, मनरंगलाल
संग्रह, राजेन्द्र मेटल बक्सं, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ १४० ।
संग्रहीतग्रंथ- राजेश नित्य पूजापाठ