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विवेच्य पूजा-काव्य-कृतियों में व्यवहृत अर्थालंकारों की तालिका
(१) अतिशयोक्ति (२) उपमा (३) उत्प्रेक्षा (४) उदाहरण
(६) व्यतिरेक अब यहाँ व्यवहत मलंकारों की स्थिति का इस प्रकार अध्ययन करेंगे कि मालंकारिक प्रतिमा पूजा-काव्य के कवियों को सहज में प्रकट हो जावे । शब्दालंकार
शम्दालंकारों में सर्वप्रथम हम अप्रास पर विचार करेंगे यथा-- अनप्रास
काव्याभिव्यक्ति में शब्दालंकार का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है और शब्दालंकार में अनुप्रास अलंकार का उल्लेखनीय महत्व है। जन-हिन्दी-पूजाकाव्य में विभिन्न भेवों के साथ अनुप्रास अलंकार अठारहवीं शती से व्यवहत है। अठारहवीं शती के कवि धानतराय विरचित 'श्रीबहत सिद्धचक्र पूजाभाषा', 'श्री रत्नत्रयपूजा' और 'श्रीमथपंचमेरु पूजा' नामक पूजा रचनाओं में छेकानुप्रास और 'श्री सरस्वती पूजा में वत्यनुप्रास का
१. परमब्रह्म परमातमा परमजोति परमीश ।।
-श्री बृहत सिद्ध चक्र पूजा भाषा, द्यानतराय, संगृहीतग्रंथ-जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७
पृष्ठ २३६ । २. शिव सुख सुधा सरोवरी सम्यकत्रयी निहार ।
-श्री रत्नत्रयपूजा, द्यानतराय, संगृहीतपथ, राजेश नित्य पूजापाठ
सग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ, १९७६, पृष्ठ ११ । ३. सुरस सुवर्ण सुगध सुहाय, फलसों पूजो श्री जिनराय।
श्री अथपचमेरू पूजा, दद्यानतराय, संगृहीतरीय-राजेश नित्यपूजा पाठ
संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ १६६ । ४. छीरोदधि गंगा, विमल तरंगा, सलिल अमंगा, सुख संमा।
-श्री सरस्वती पूजा, यानतराय, संगृहीतग्रंथ-राजेश नित्यपूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल बर्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ ३७५ ।