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बीमचन्द' ने भी इस छन्द को पर्याप्त परिवर्तन के साथ अपनी पूजा काव्यकृतियों में व्यवहार किया है। इन सभी पूजारचयिताओं ने इस एंव को शांतरस के परिपाक में प्रयोग किया है ।
चौपाई
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चौपाई मात्रिक समछत्व का एक भेद है ।" अपभ्रंश में पद्धरिया छन्द में चोपाई का आदिम रूप विद्यमान है ।" अपभ्रंश की कड़बक शैली जब हिन्दी में अवतरित हुई तो पद्धरिया छंद के स्थान पर चौपाई छंद गृहीत हुआ है। चौपाई छंद सामान्यत: वर्णनात्मक है अतः इस छंद में सभी रसों का निर्वाह सहज रूप में हो जाता है । कथाकाव्यों में इस छंद की लोकप्रियता का मुख्य कारण यही है ।
जैन - हिन्दी-पूजा - काव्य में इस छंत्र के दर्शन अठारहवीं शती से होते हैं । अठारहवीं शती के कविवर धानतराय ने 'श्री निर्वाणक्षेत्र पूजा' नामक कृति में इस छंद का व्यवहार सफलतापूर्वक किया है। *
१. श्री बाहुबलि पूजा, दीपचन्द, संगृहीतग्रंथ - नित्य नियम विशेष पूजन सग्रह, सम्पा० व प्रकाशिका -० पतासीबाई जैन, गया (बिहार), संवत २४८७, पृष्ठ ६२ ।
२. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, प्रकाशकज्ञानमण्डल लिमिटेड, बनारस, संस्क० संवत् २०१५, पृष्ठ २९० ।
३. अपभ्रंश के महाकाव्य, अपभ्रंश भाषा और साहित्य डा० हीरालाल, लेख प्रकाशित नागरी प्रचारिणी पत्रिका, हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, डा० प्रेम सागर जी जैन, प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, वाराणसी-५, पृष्ठ ४३६ ।
४. जैन साहित्य की हिन्दी साहित्य को देव, डा० रामसिंह तोमर, प्रेमी अभिनदन ग्रथ, प्रकाशक- यशपाल जैन, मंत्री, प्रेमी अभिनंदन ग्रंथ समिति, टीकमगढ़ ( सी० आई० ), संस्क० अक्टूबर १९४६, पृष्ठ ४६८ ।
५. नमों ऋषभकैलास पहारं,
नेमिनाथ गिरनार निहारं । वासुपूज्य चंपापुर बंदी, सन्मति पावापुर अभिनदो ||
द्यानतराय, सगृहीत ग्रथ - राजेश नित्य राजेन्द्र मैटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़,
- श्री निर्वाण क्षेत्र पूजा, पूजा पाठ संग्रह, प्रकाशक सहकरण १९७६, पृष्ठ ३७३
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