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shina शती के पूजाकार 'बावन' और मल्लजी' ने लुप्तोपमालंकार तथा रामचन्द्र' और मनरंगलाल " ने पूर्णोपमालंकार का व्यवहार परम्परानुमोदित उपमानों के साथ सफलतापूर्वक किया है ।
बसों शती में श्री आदिनाथ जिनपूजा' और 'श्री देवशास्त्रगुरूपूजा' नामक पूजा कृतियों में लुप्तोपमालंकार तथा श्रीनेमिनाथ जिन
१. शांतिनाथ जिनके पद पंकज, । जो भवि पूजे मन वच काय ।
- श्री शांतिनाथ जिन पूजा, वृन्दावन, संगृहीत ग्रंथ - राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वक्र्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ ११७ ।
२. श्री जिन चरण सरोजकू । पूज हर्ष चितचाव ।
- श्री क्षमावाणी पूजा, मल्लजी, सगृहीतग्रंथ - ज्ञानपीठ पूजांजलि, अयोध्या प्रसाद गोयलीय, मन्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस १६५७, पृष्ठ ४०३ ।
३. अक्षत अखडित मतिहि सुन्दर जोति शशि सम लीजिए ।
- श्री सम्मेद शिखर पूजा, रामचन्द, संगृहीत ग्रंथ --जैन पूजापाठ संग्रह भागचन्द पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता ७, पृष्ठ १२७ ।
४. पय समान अति निर्मल, दीसत सोहनो ।
- श्री अनन्तनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल, संगृहीतग्रंथ - ज्ञानपीठ, पूजाजलि, अयोध्याप्रसाद गोयलीय, मन्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, १९५७, पृष्ठ ३५१ ।
५. तृणवत ऋद्धि सब छोड़िके, तप धारयो वन जाय ।
- श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक, संगृहीत ग्रंथ जैन पूजा पाठ संग्रह भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, मलिनो सेठ पृष्ठ २७ ।
रोड,
कलकला-७,
६. मृग सभ मृग तृष्णा के पीछे, मुझको न मिली सुख को रेखा ।
-श्री देवशास्त्रगुरु पूजा, युगल नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र पृष्ठ ५०
किशोर 'युगल', संग्रहीत ग्रंथ -- राजेश मेटिल वमसं. हरिनगर, अलीगढ़ १९७६,.