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१ सती के कवि बानतराय रचित 'श्री नन्दीश्वरसीप पूना' नामक स्वना चलन सम का व्यवहार परिलक्षित है।'
उन्नीसवीं शती के पूजा कवि रामचन्द्र प्रणीत 'श्री अनन्तनाथ जिन पूजा' मामक पूजा कृति में 'चन्दन' शब्द उल्लिखित है। बीसौं शती के पूजा काम के रचयिता सेवक ने 'चन्दन' सम्ब का प्रयोग 'श्री माविनाशिन पूजा' मानक पूचा रचना में इसी अभिप्राय से सफलतापूर्वक किया है।'
अक्षत-नक्षतं असतं । अक्षत् शब्द अक्षय पद अर्थात मोक्ष पदका प्रतीक है। अगत् का शाब्दिक अर्थ है वह तत्व जिसकी क्षति न हो। महात् का क्षेपण कर भक्त अक्षय पद की प्राप्ति कर सकता है।
जिस प्रकार अक्षत या चावल में उत्पाव-व्यय रूप समाप्त हो जाता
१. भव तप हर सीतलवास, सो चंदन नाही।
प्रभु यह गुन की सांच आयो तुम ठाही ।। नंदीश्वर श्रीजिनधाम, बावन पुंज करो। वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरो॥ ___ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण दिशसम्बधि एक अंजन गिरिचारदधि मुख आठ रतिकरेभ्यो चंदन निर्वपामीतिस्वाहा । - श्री नंदीश्वरद्वीपपूजा, द्यानतराय, संगृहीतग्रंथ-राजेश ,नित्यपूजा
पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृ० १७१ . २. कुंकुमादि चन्दनादिगंधशीत कारया । संभवेन अन्तकेन भूरिताप हारया ॥
ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेन्द्राय मोहताप विनाशनाय चंदन निर्वपामीति स्वाहा। -श्री अनंतनाथ जिनपूजा, रामचन्द्र , संग्रहीत ग्रंप-रावेश नित्यपूजापाठ
संग्रह, राजेन्द्र मेटिल बस, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ- १०४ । ३, मलयागिरि चंदनदाह निकन्दन, कंचन झारी में भर ल्याय ।' श्री जी के घरण बढ़ावी भविमन भवताप तुरत मिटिजाय ।
ॐ ह्रीं श्री मादिनाप जिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदन निर्वपा. मीति स्वाहा। --श्री वादिनाथ जिनपूजा, सेवक, संगृहीत मंच, अन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोग, कलकत्ता ७, पृ ५।