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फल शब्द का व्यवहार 'भी सोलहकारण पूजा' नामक रचना में किया है ।" arotest att के पूजाकार मल्ल रचित 'श्री क्षमावाणी पूजा' नामक रचना में फल शब्द उक्त अभिप्राय से अभिव्यक्त है ।"
बीसवीं शती के पूजा प्रणेता युगल 'श्री देवशास्त्र गुरुपूजा' नामक रचना में व्यंजना में हुआ है।"
किशोर 'युगल' द्वारा विरचित फल शब्द का प्रयोग इसी अर्थ
उपर्य' कित विवेचन से स्पष्ट है कि जैन भक्त्यात्मक प्रसंग में पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है। द्रव्यपूजा में अष्टद्रव्यों का उपयोग असंदिग्ध है। यहाँ इन सभी द्रव्यों में जिस अर्थ अभिप्राय को व्यक्त किया गया है। हिन्दी-जैनपूजा-काव्य में वह विभिन्न शताब्दियों के रचयिताओं द्वारा सफलतापूर्वक व्यवहृत है। जैन- हिन्दी-पूजा-काव्य मूल रूप में प्रवृत्ति से निवृत्ति का संदेश देता है साथ ही मत में सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा का भाव भरता है।
१. श्री फल आदि बहुत फल सारपूजों जिनवांछित दातार । परम गुरु हो जय जय नाथ परमगुरु हो ।
ॐ ह्रीं दर्शन विशुद्धयादिषोडकारणेभ्यो मोक्षफल प्राप्तायः फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
- श्री सोलहकारण पूजा, धानतराय, संगृहीतग्र च-राजेश नित्यपूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ १७६ ।
२. केला अंब अनार ही नारिकेल ले दाख ।
अग्रधरो जिन पदतने, मोक्ष होय जिन भाख ॥
ॐ ह्रीं अष्टांग सम्यग्दर्शनाय अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय रत्नत्रयाय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री क्षमावाणी पूजा, मल्लजी, संगृहीतग्रन्थ- ज्ञानपीठ पूजांजलि, प्रकाशक - अयोध्याप्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, १९५७, पृष्ठ ४०४ ।
३. जग में जिसको निज कहता मैं, वह छोड़ मुझे चल देता है । मैं आकुल व्याकुल हो लेता, व्याकुल का फल व्याकुलता है ॥
ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्याय मोक्षफल प्राप्तये फेल निर्वपामीति स्वाहा श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, युगलकिशोर जैन 'युगल' संग्रहीत ग्रन्थ - राजेश नित्यपूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर अलीगढ़, सन् १९७६, पृष्ठ ४६ ॥
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