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नहीं हुआ है। अठारहवीं शती के कविवर खानतराय द्वारा रचित 'श्रीदेवपूजा" में रत्नत्रय का सफल प्रयोग हुआ है । इसी कवि ने रत्नत्रय पर आधारित श्रीदर्शन पूजा, श्रीज्ञानपूजा एवं श्रीचारित्र पूजा काव्य हो रथे हैं। 'श्रीदर्शनपूजा' में सम्यग्दर्शन सार रूप में व्यंजित है ।" 'श्रीज्ञान-पूजा' में सम्यग्ज्ञान को मोहher के लिए area foया है।' 'श्रीचारित्रपूजा' में तीर्थंकर द्वारा सम्यक् चारित्र को सार रूप मानकर ग्रहण करने की बात कही गई है। कवि ने 'श्री रत्नत्रयपूजा भाषा' में दर्शन, ज्ञान और चारित्र को मुक्ति प्राप्त्यर्थरत्नत्रय का उल्लेख किया है।" उन्नीसवों और बीसवीं शती में रचित जन हिन्दी - पूजा काव्य में सम्यक् रत्नत्रय का प्रयोग नहीं हुआ है ।
सिद्ध-पद पाने के लिए सोलह-कारण- भावनाओं का चितवन आवश्यक है। भावना - पुण्य-पाप, राग-विराग, संसार-मोक्ष का कारण है। कुत्सित भावनाओं का त्याग कर उत्तम भावनाओं का चिन्तवन करना श्रेयस्कर है ।
१. मिथ्यातपन निवारन चन्द समान हो । मोह तिमिर वारन को कारण भानु हो ।। काम कषाय मिटावन मेघ मुनीश हो । धानत सम्यक्रत्नत्रय गुनईश हो ||
- श्री देवपूजा, यानतराय, बृहद् जिनवाणी संग्रह, सम्पादक प्रकाशकपन्नालाल बाकलीवाल, मदन गंज, किशनगढ़, राजस्थान, सन् १६५६, पृष्ठ ३०५ ।
२. नीर सुगन्ध अपार, त्रिषा हर मल छय करें । सम्यग्दर्शन सार, आठ अंग पूजों सदा ॥
- श्री दर्शनपूजा, द्यानतराय, राजेश नित्यपूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, अलीगढ़, सन् १९७६, पृष्ठ १६३ ।
३. पंचभेद जाके प्रकट, ज्ञेय प्रकाशन भान । मोह तपन हर चन्द्रमा, सोई सम्यग्ज्ञान ||
- श्री ज्ञानपूजा, धानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, वही, पृष्ठ १६५ ।
४. विषय रोग औषधि महा, देवकषाय जलधार ।
तीर्थंकर जाकों धरें, सम्यक् चारित्रसार ॥
- श्री चारित्र पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य नियम पूजा, वही, पृष्ठ १९७ ।
५. सम्यक् दर्शन, ज्ञान, व्रत शिव मग तीनों मयी ।
पार उतारण जान, 'द्यानत' पूजों व्रत सहित ॥
- श्री रत्नत्रय पूजाभाषा, खानतराय, राजेश नित्य नियम पूजा संग्रह राजेन्द्र मेटल वर्क्स, अलीगढ़, १९७६ पृष्ठ ११२ ।