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रहता है ।" देह से भिन्न, कर्मों से रहित और अनन्त सुख का भण्डार आत्मा ही श्रेष्ठ है। इस प्रकार सदा उसका ही चिन्तवन करना श्रेयस्कर हैं । *
आलम - भावना - एकान्त मिध्यात्व, विनय मिध्यात्व, विपरीत मिथ्यात्व, संशय मिथ्यात्व और अज्ञान नामक पांच मिय्यात्वों हिंसा, झुंड, चोरी, कुशील और परिग्रह नामक पाँच प्रकार की अविरति क्रोध, मान, माया और लोभ नामक चार कषायों तथा तीन प्रकार का योग-मन, वचन और काय आश्रय के कारण हैं।' कर्मों के आस्रव रूप क्रिया से नहीं होता । आलब संसार में भटकने का कारण है, जब तक आस्रव है तब तक मोक्ष नहीं मिल सकता रोकना ही हितकर है।"
परम्परा से भी मोक्ष
अस्तु वह निद्य है । फलस्वरूप आलव को
संवर- भावना - आलव का निरोध संवर है । सम्यक्त्व के चल मलिन और अगाढ़ दोषों को छोड़कर सम्यग्दर्शन रूपी दृढ़ कपाटों के द्वारा मिथ्यात्व रूप आलव द्वार रुक जाता है। निर्दोष सम्यग दर्शन के धारण करने से आलव का प्रथम मुख्य द्वार मिथ्यात्व बन्द हो जाता है और उसके द्वारा
१. दुग्गधं बीभछं कलिम लभरिदं अचेयणं मुत्तं । asणप्पडण सहावं देहं इदि चितये णिच्च ॥
- कुन्दकुन्द प्राभृत संग्रह, अनुप्रेक्षा अधिकार, गाथांक ४४, पृष्ठ १४५, वहो ।
२. देहादो वदिरितो कम्म विरहिओ अणंत सुहणिलओ ।
चोक्खो हवे अप्पा इदि णिवच भावणं कुज्जा ॥
- कुन्दकुन्द प्राभूत संग्रह, अनुप्रेक्षा अधिकार, गाथांक ४६, वही, पृष्ठ १४५ ।
३. मिच्छचं अविरमणं कसाय जोगा यआसवा होति ।
पण पण चउ-तियभेदा, सम्मं परिकित्तिदा समए ॥
- कुन्दकुन्द प्राभृत संग्रह, अनुप्रेक्षा अधिकार, गाथांक ४७, कुन्दकुन्दाचार्य, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, १९६०, पृष्ठ १४५ ।
४. पारंपजाएण दु आसव किरियाए णत्थि णिव्वाणं । संसार गमण कारणमिदि णिदं आसवो जाण ॥
- कुन्दकुन्द प्राभृत संग्रह, अनुप्रेक्षा अधिकार, गायांक ५६. वही ।
५. ' मन्त्रव निरोधः संवरः, तत्वार्यसूत्र, अध्याय ६, सूत्र १, उमास्वामी, अखिल विश्व जैन मिशन, अलीगंज, एटा, १६५७, पृष्ठ १२० ।