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( २३ ) १७. भाकुलता-- चेतन-अचेतन पदार्थों से वियोग प्राप्त करने पर वित्त
में घबराना। १६. मद - ऐश्वर्य की प्राप्ति से आत्मा में अहंकार होना।'
आगम का अभिवक्ता जिनेन्द्र-देव समस्त दोषों रहित सर्वज्ञ, वीतराग, आत्मीक गुणों से विभूषित होता है।
विवेच्य-काव्य में अारह दोषों का उल्लेख आरम्भ से ही हुआ है। अठारहवीं शती के कविबर द्यानतराय प्रणीत 'श्री देवशास्त्र गुरुपूजा' में अठारह दोषों को जीतने के उपरान्त सिद्ध-शक्ति को प्राप्त करने का उल्लेख मिलताहै।' उन्नीसवीं शती के कविवर श्री बख्तावररत्न प्रणीत 'श्री चविंशति जिनपूजा' में अन्तर्यामी अरहन्त भगवान द्वारा अठारह दोषों को जीतने की अभिव्यंजना हुई है। कविवर मनरंगलाल कृत 'श्री मल्लिनाथ पूजा तथा कविरामचन्द्र
१. छुहतण्ह भीरुरोसो रागो मोहो चिंता जरारुजामिच्चू ।
स्वेदं खेदं मदो रइ विम्हियणिहा जणुव्वेगो।। ---नियमसार, जीव अधिकार, कुन्दकुन्दाचार्य, श्री सेठी दिगम्बर जैन
ग्रन्थमाला, धनजी स्ट्रीट, बम्बई-३, १९६०, पृष्ठांक १२ । २. णिस्सेसदोम रहिओ केवल णाणाइ परम विभव जुदो।
सो परमप्पा उच्चइ तविवरीओ ण परमप्पा ।। -नियमसार, जीव अधिकार, कुन्दकुन्दाचार्य, श्री सेठी दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, धनजी स्ट्रोट, बम्बई-३, पृष्ठ १७ । "चउ कर्मकि वेसठ प्रकृति नाशि । जोते अष्टादश दोष राशि ॥"
-श्री देवशास्त्रगुरु पूजा, द्यानतराय, श्री जैनपूजा पाठ संग्रह, ६२;
नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ २० । ४. वसु सहस नाम के धारी, तातें नित धोक हमारी ।
जो दोष अठारह नामी, तुम नाशे अन्तर्यामी ।। -श्री चतुर्विशति जिनपूजा, बख्तावररत्न, वीरपुस्तक भण्डार, मनिहारों
का रास्ता, जयपुर, सं० २०१८, पृष्ठ ३ । ५. जय आनन चारि प्रसन्न नमों।
बरु दोष अठारह शून्य नमों ।। -श्री मल्लिनाथ पूजा, मनरंगलाल, पं० शिखरचन्द्र जैन, जवाहरगंज, जबलपुर, म०प्र०, चतुर्थ संस्करण सन् १९५०, पृष्ठ १३६ ।